1) बंधन बांधो नेह का पुनि पुनि जतन लगाय ।
चुन चुन मीत बनाइये खोटे जन बिलगाय ॥
2) प्रेम कुटुम्ब समाइए सागर नदी समाय ।
ज्यों पंछी आकाश मे स्वतंत्र उड़ता जाय ॥
3) धोखा झूठ फरेब औ फैला भ्रष्टाचार ।
फैली शासनहीनता है पसरा व्यभिचार ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 30, 2014 at 1:30pm — 11 Comments
क्षण भंगुर जीवन हुआ, जीवन का क्या मोल ।
भज लो तुम भगवान को, क्यों रहे विष घोल ।।
बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, चाहे तो लो खोल ।
खुले हुये अंबर तले, कर लो अब किल्लोल ॥
* भामा माया मोहिनी, मोहति रूप अनेक ।
माया माला भरमनी, फंसत नाहीं नेक ॥
*इस दोहे को इस तरह भी देखें :-
ऐसी माया मोहिनी मोहती रूप अनेक ।
केवल माला फेर के कोई न बनता नेक ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
शाख पर लगा
अलौकिक सौंदर्य पर इतराता
वसुधा को मुंह चिढ़ाता
मुसकुराता इठलाता
मस्त बयार मे कुलांचे भरता
गर्वीला पुष्प !..........
सहसा !!!
कपि अनुकंपा से
धराशायी हुआ
कण कण बिखरा
अस्तित्व ढूँढता
उसी धरा पर
भटकता यहाँ से वहाँ
उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ...
बेचारा पुष्प !!!
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:30am — 21 Comments
छंद पर मेरा प्रथम प्रयास
छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम
आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।
ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,
खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ ।
भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर
भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।
सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,
राधिका सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 21, 2014 at 8:30pm — 16 Comments
जाग रे मन !
कब तक यूं ही सोएगा
जग मे मन को खोएगा
अब तो जाग रे मन !!
1)
सत्कर्मों की माला काहे न बनाई
पाप गठरिया है सीस धराई
जाग रे !!!!
2)
माया औ पद्मा कबहु काम न आवे
नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे
जाग रे !!!!
3)
दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई
प्रीति की रीति अबहूँ न निभाई
जाग रे !!!!!
4)
सारा जीवन यही जुगत लगाई
मान अभिमान सुत दारा पाई
जाग रे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
गंगा चुप है ...................
वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल
लहराती, बल खाती जाए
रूप चाँदी सा दूधिया धवल
जनमानस तारती जाए
वो गंगा !! आज चुप है ..............
हे ! मानस किञ्च्त जागो
भागीरथी की व्यथा सुनो
तुमको तो जीवन दिया है
किन्तु तुमने क्या दिया है
व्यथित गंगा !! आज चुप है ................
आंचल मैला किए देते हो
मुख मे भी विष दिये देते हो
चाँदी सा रूप हुआ क्लांत
सौम्यता भी हुई…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:30pm — 9 Comments
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