ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,
पता नहीं किसी को कब आ जाए फरिस्ता ।
मौत के सौदागर उगाते हैं घृणा की फसल
समाज में खड़ी करते हैं नफरत की दीवार ।
बुझाते सभी के सामने जलता हुआ चिराग
सोचो सच और झूठ में अंतर है कितना ॥
एक बंदा भरी में कुछ आंशू बहा के कहता
विश्वास करो मुझपर हूँ भरी सभा में कहता ।
आज हमारे समाज से मिट रही साहिस्णुंता
आज घोल रहे विष देश में कुछ हमारे नेता ॥
मैं तुम्हारे दुख की घड़ी में बेहद गम जुदा हूँ
कोई…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 29, 2016 at 10:00pm — 3 Comments
सागर की उठती गिरती लहरें, पथ पर चलना सिखा रही ।
ढूंढती पल पल किनारा, मंज़िल से पहले कभी रुके नहीं ।
सारी व्यथा अपने मन की आपस में एक दूसरे से कहती ।
सागर की गहरी शांति के विरुद्ध रौद्र रूप भरकर बहती ।
ख़तरों से आगाह कराती मंज़िल से पहले कभी रुके नहीं ।
हर काल परिस्थिति में हमको जीवन लक्ष्य बता देती ।
घायल, व्यथित खतरों से खेल, किनारों से दांस्ता कहती ।
संदेशा मानव को देकर कुछ खट्टे मीठे अनुभव कहती ।
आदि से लेकर अंत तक का लेखा…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 29, 2016 at 3:00pm — 6 Comments
देखो कानून की परिभाषा कैसे बदल जाती है,
नेताओं को बेल और गरीब को जेल हो जाती है ।
यहाँ धनवानों का सारा ऋण माफ हो जाता है,
किसान की ज़िंदगी ऋण में ही साफ हो जाती है ।
किसी बात पर यूं ही कभी इतबार मत करना,
घट जाए कोई घटना तो तकरार मत करना ।
विश्वास और धोखा एक ही सिक्के दो पहलू है,
एक जीने का मकसद और दूसरा छीन लेता है ।
चंदा और रोशनी एक दूजे के संग में घूम रहे ,
पर दिन में एक दूसरे के विरुद्ध जंग लड़ रहे ।
गरीब का आरक्षण कुछ…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 22, 2016 at 10:30pm — 1 Comment
Added by Ram Ashery on January 16, 2016 at 5:00pm — 3 Comments
शिक्षा की जब ज्योति जले, विकसित होवे लोग।
समाज को जब पंख मिले, खुशियाँ भोगें लोग ॥
भूख गरीबी जीत के, निर्भर हुआ अब देश ।
बोए बीज अब प्रेम के, प्रगति कर चला देश ॥
गलत इरादे दुश्मन के, बढ़ा रहे अब क्लेश ।
हम रखवाले वतन के, जग को दे दो संदेश ॥
परचम ऊंचा हो तभी, फैले चारों ओर ।
आन मान सम्मान सभी, करें साथ गठजोर ॥
करुणा सबके मन जगे, कोई दुखी न होय ।
हृदय से सब गले मिले, नफरत दूरी होय ॥
आतंकवाद के कष्ट को, जल्दी करेगे…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
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