बह्र : 1222 1222 122
तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ
बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ
वहाँ दुनिया को तू अपना रही है
यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ
उठा कर हाथ से ये लाश अपनी
मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ
तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा
सभी की आँख में चुभता रहा हूँ
नहीं मालूम जाना है कहाँ पर
न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ
मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे
तुम्हीं से…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:51pm — 8 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22/112
मैंने देखा है कि दुनिया में क्या क्या होता है
मुझसे मत बोलिए मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
इश्क़ ही सबसे बड़ा ज़ुर्म है इस दुनिया में
ये ख़ता कर लो तो हर शख़्स ख़फ़ा होता है
जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं
और जो अच्छा करे तो वो बुरा होता है
मैं भी इस ज़ख़्म को नासूर बना डालूँगा
दर्द बतलाओ मुझे कैसे दवा होता है
कभी दिखता था ख़ुदा मुझको भी मेरे अन्दर
और अब इस पे भी…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:30am — 10 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:00pm — 14 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 13, 2019 at 7:30pm — 18 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था
दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था
कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के
ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था
खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत
हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था
ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं
हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था
ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं
रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं…
Added by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 8:00pm — 12 Comments
बह्र : 2122 2122 2122
याद आ आ कर तुम्हारी, जानते हो?
रात भर मुझको नचाती, जानते हो?
प्यार करने वाला होता है जमूरा
इश्क़ होता है मदारी, जानते हो?
शाइरी में चाँद को कहते हैं सूरज
आग को कहते हैं पानी, जानते हो?
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
बन्द कमरे की तरह अब हो गया हूँ
मुझमें दरवाज़ा न खिड़की,…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 1, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
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