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Vijay nikore's Blog – January 2013 Archive (5)

कोरा कागज़

कोरा कागज़

अगर तू चाहती तो कभी भी

कोरे कागज़ पर मुझको

अँगूठा लगाने को कह सकती थी

और जानती हो, मैं..

मैं ‘न’ न कहता ।

उस कोरे कागज़ पर फिर

तुम कुछ भी लिख सकती थी।



तुमने मेरे नाम पर मुझसे

अधिकार माँगा

मैंने वह आँखें मूँद के दे दिया,

पर जब "तुम्हारे" अपने नाम पर तुमने

मुझसे अधिकार माँगा,

मेरे ओंठों पर हर पल नाम तुम्हारा था,

अत: यह अधिकार मैं तुम्हें दे न सका ।



मेरे धुँधँले-धुँधले सुलगते वजूद ने

नीदों…

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Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 3:00pm — 17 Comments

संस्मरण .... अमृता प्रीतम जी

संस्मरण ... अमृता प्रीतम जी

यह संस्मरण एक उस लेखक पर है जिसने केवल अपनी ही ज़िन्दगी नहीं जी, अपितु उस प्रत्येक मानव की ज़िन्दगी जी है जिसने ज़िदगी और मौत को,खुशी और ग़म को, एक ही प्याले में घोल कर पिया है  ... जिसके लिए ज़िन्दगी की "खामोशी की बर्फ़ कहीं से भी टूटती पिघलती नहीं थी।"

यह संस्मरण उस महान कवयित्रि पर है जो सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही...."पर मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई आवाज़ दे, और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी…

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Added by vijay nikore on January 29, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

आवाहन

            

 

                                                              आवाहन

                           झूमते पत्तों में से छन कर आई मेरे आँगन में

                     हँसती-हँसती उदभासित किरणों की छाप,

                     नभ-स्पर्शी हवाएँ तरंगित…

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Added by vijay nikore on January 19, 2013 at 7:15pm — 15 Comments

कट गई है लहर

                           कट  गई  है  लहर

            जाने क्यूँ कुछ ऐसा-ऐसा लगता है

            कि  जैसे  कट  गई  लहर  नदी  से,

            वापस न लौट सकी है,

            और ज़िन्दगी इस कटी लहर में धीरे-धीरे

            तनहा  तिनके  की  तरह …

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Added by vijay nikore on January 9, 2013 at 6:00pm — 7 Comments

भोर के पंछी

भोर के पंछी

तुम ...

रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी

तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,

सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,

खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट

और मैं ...

मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,

नींदों में मुस्करा देती थी,

तुम्हें पा लेती थी।

पर सुनो!

सुन सकते हो क्या ... ?

मैं अब

तुम्हें पा नहीं सकती थी,

एक ही रास्ता…

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Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments

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