For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – January 2017 Archive (11)

ये ,कैसा घर है ....

ये ,कैसा घर है ....

ये

कैसा घर है

जहां

सब

बेघर रहते हैं



दो वक्त की रोटी

उजालों की आस

हर दिन एक सा

और एक सी प्यास

चेहरे की लकीरों में

सदियों की थकन

ये बाशिंदे

अपनी आँखों में सदा

इक उदास

शहर लिए रहते हैं

ये

कैसा घर है

जहां सब

बेघर रहते हैं

उजालों की आस में

ज़िन्दगी

बीत जाती है

रेंगते रेंगते

फुटपाथ पे

साँसों से

मौत जीत जाती है

बेरहम सड़क है…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 29, 2017 at 7:30pm — 13 Comments

ये अश्क ...

ये अश्क ...

नहीं होता

चेहरा

दुःख का

कोई

नहीं होती उम्र

मौत की

कोई

ज़िन्दगी

खुशियों का

आसमां नहीं

ग़मों की

धूप है

ज़िन्दगी की धूप में

ख़ुशी तो बस

छाया का नाम है

पल भर का सुकून है

फिर गमों की

दास्तान है

यादों के

खंज़र हैं

कुछ आँखों से

बाहर हैं

कुछ आँखों के

अंदर हैं

कह गए

बह के

और

कुछ अभी

दिल में…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 24, 2017 at 6:18pm — 6 Comments

देर तक .....

देर तक .....

देर तक

मैं मयंक को

देखती रही

वो वैसा ही था

जैसा तुम्हारे जाने से

पहले था

बस

झील की लहरों पे

वो उदास अकेला

तैर रहा था

देर तक

मैं उस शिला पर

बैठी रही

जहां हम दोनों के

स्पर्शों ने सांसें ली थीं

शिला अब भी वैसी ही थी

जैसी

तुम्हारे जाने से पहले थी

बस

मैं

और थे मेरी देह में

समाहित

तुम्हारे अबोले स्पर्श

देर तक …

Continue

Added by Sushil Sarna on January 20, 2017 at 1:30pm — 6 Comments

इंतज़ार ...

इंतज़ार ...



छोड़िये साहिब !

ये तो बेवक़्त

बेवज़ह ही

ज़मीं खराब करते हैं

आप अपनी उँगली के पोर

इनसे क्यूं खराब करते हैं

ज़माने के दर्द हैं

ज़माने की सौगातें हैं

क्योँ अपनी रातें

हमारी तन्हाईयों पे

खराब करते हैं

ज़माने की निगाह में

ये

नमकीन पानी के अतिरिक्त

कुछ भी नहीं

रात की कहानी

ये भोर में गुनगुनायेंगे

आंसू हैं,निर्बल हैं

कुछ दूर तक

आरिजों पे फिसलकर

खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे

हमारे दर्द…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 6:34pm — 13 Comments

माटी का दिया ...

माटी का दिया ......

जलता रहा
इक दिया
अंधेरों में
रोशनी के लिए

तम
अधम
करता रहा प्रहार
निर्बल लौ पर
लगातार

आख़िर
हार गया वो
धीरे धीरे
कर लिया एकाकार
अंधकार से


रह गया शेष
बेजान
माटी का दिया
फिर जलने को
अन्धकार में
गैरों के लिए

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 15, 2017 at 4:24pm — 8 Comments

स्मृति के आँगन में ...

स्मृति के आँगन में ...

तुम सवालों को

सवाल क्योँ नहीं रहने देती

अपनी मौनता से

तुम नैन व्योम में बसी

अतृप्त तृष्णा से

अपने कपोलों पर

क्योँ गीले काजल से श्रृंगार

कर अनुत्तरित प्रश्नों का

उत्तर चाहती हो

क्योँ सुरभित मधु पलों को

अपने गीले आँचल में लपेट कर

स्मृति अंकुरों को

प्रस्फुटित होने का अवसर

देना चाहती हो

क्योँ मृदु चांदनी में

उदास निशा से

टूटे तारे से माँगी इच्छा के…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 12, 2017 at 1:00pm — 10 Comments

अधूरी प्रीत से ....

अधूरी प्रीत से ....

लब
खामोश थे
पलकें भी
बन्द थीं
कहा
मैंने भी
कुछ न था
कहा
तुमने भी
कुछ न था
फिर भी
इक
अनकहा
नन्हा सा लम्हा
आँखों की हदें तोड़
देर तक
मेरी हथेली पे बैठा
मुझे
मिलाता रहा
मेरे अतीत से
अधूरी तृषा में लिपटी
अधूरी प्रीत से

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 10, 2017 at 2:22pm — 4 Comments

हिम बसंत ...

हिम बसंत ...

प्रथम प्रणय का
प्रथम पंथ हो
हिय व्यथा का
तुम ही अंत हो
शिशिर ऋतु का
शिशिरांशु हो
विरह पलों का
शिशिरांत हो
शीत पलों की
मधुर सिहरन हो
नयन सिंधु का
मौन कंपन्न हो
मधु पलों में
मेरे प्रिय तुम
मधु स्मृतियों का
हिम बसंत हो

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 9, 2017 at 8:40pm — 8 Comments

सच ,लगने लगा पराया ...

सच ,लगने लगा पराया ...

न मेरा

आना झूठ था

न तेरा

जाना झूठ था

दूर जाने का मुझसे

बस बहाना

झूठ था

जीती रही

जिस शब् को

हकीकत मानकर

सहर की शरर पे सोया

वो

अफ़साना झूठ था

बादे सबा

में लिपटी

सदायें

यूँ तो आयी थीं

तेरे बाम से मगर

उसमें छुपा

हिज़्रे ग़म को

बहलाने का

तराना झूठ था

इक झूठ

तूने जिया

इक झूठ

मैंने जिया

न सच

तुझे भाया…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 2:00pm — 16 Comments

ख़्वाब का माहताब ....

ख़्वाब का माहताब ....

तुम्हारे

अंधेरों में

मेरे हिस्से के

उजाले

तुम्हारी मुहब्बत की

गिरफ़्त में

बे-आवाज़

सिसकते रहे

और तुम

मेरी चश्म से

शीरीं शहद से

लम्हों को

कतरों में समेटे

बहते रहे

मेरा ज़िस्म

तुम्हारे लम्स

की हज़ारों

खुशबुओं के  

कफ़स में

सांस लेता रहा

आफ़ताब की शरर ने

उम्मीद की दहलीज़ को

हक़ीक़त की

आतिश से

ख़ाक में…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:30pm — 17 Comments

चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 3, 2017 at 5:40pm — 23 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service