इतनी सी बात थी ....
एक शब के लिए
तुम्हें माँगा था
अपनी रूह का
पैरहन माना था
मेरी इल्तिज़ा
तुम समझ न सके
तुम ज़िस्म की हदों में
ग़ुम रहे
मेरा समर्पण
तुम्हारी रूह पर
दस्तक देता रहा
लफ्ज़
अहसासों की चौखट पर
दम तोड़ते रहे
रूह का परिंदा
करता भी तो क्या
हार गया
दस्तक देते -देते
उल्फ़त की दहलीज़ पर
तुम
समझ न सके
बे-आवाज़ जज़्बात को
ज़िस्म की हदों में कहाँ
उल्फ़त के अक़्स होते…
Added by Sushil Sarna on January 30, 2019 at 6:39pm — 4 Comments
पूर्ण विराम :
ओल्ड हो जाता है जब इंसान
ऐज हो जाती है लहूलुहान अपने ही खून के रिश्तों से
होम में जल जाते हैं सारे कोख के रिश्ते
बदल जाता है
एक घर
जब
ढाँचा चार दीवारों का
पुराना ज़िस्म
जब
पुराना सामान हो जाता है
वो
ओल्ड ऐज होम का
सामान हो जाता है
अपनों के हाथों पड़ी खरोंचों के
झुर्रीदार चेहरे
मृत संवेदनाओं की
कंटीली झाड़ियों के साथ
शेष जीवन व्यतीत करने वालों के लिए
अंतिम सोपान हो जाता…
Added by Sushil Sarna on January 28, 2019 at 1:30pm — 6 Comments
अनरोई आँखें ...
बहुत रोईं
अनरोई आँखें
मन की गुफाओं में
अनचाहे गुनाहों में
शमा की शुआओं में
अंधेरों की बाहों में
बेशजर राहों में
किसी की दुआओं में
प्यासी निगाहों में
खामोश आहों में
सच
बहुत रोईं
ये कम्बख़्त
अनरोई आँखें
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 26, 2019 at 5:30pm — 4 Comments
तुम्हारी अगुवानी में....
ज़रा ठहरो
मुझे पहले
तुम्हारी अगुवानी में
इन कमरों की बंद खिड़कियों को
खोल लेने दो
जब से तुम गए हो
हवा ने भी आना छोड़ दिया
अब तुम आये हो तो
साँसों को
ज़िंदगी का मतलब
समझ आया है
ज़रा ठहरो
पहले मुझे
तुम्हारी अगुवानी में
मन की दीवारों से
सारी उलझनों के जाले
उतार लेने दो
ताकि तुम्हें
बाहर जैसी खुली हवा का
अहसास दिला सकूं
इन घर की दीवारों…
Added by Sushil Sarna on January 23, 2019 at 2:06pm — 6 Comments
तीन क्षणिकाएं :
बन जाती हैं
बूँदें
घास पर
ओस की
जब कभी
रोता है मयंक
कौमुदी के वियोग में
.............................
एक भारहीन अतीत
हृदय कलश में
पिउनी पुष्प सा
सुवासित होता रहा
मैं
देर तक
समर्पित रही
अधर तटों के
क्षितिज पर
.........................
जीत दम्भ की
प्राचीर को तोड़ते
जब
दोनों हार गए
तो
प्रचीर भी
हार गई
जीत की
स्वीकार पलों…
Added by Sushil Sarna on January 21, 2019 at 7:13pm — 4 Comments
आसमान का चाँद :
शीत रैन की
धवल चांदनी में
बैचैन उदास मन
बैठ जाता है उठकर
करने कुछ बात
आसमान के चाँद से
मैं अकेली
छत की मुंडेर पर
उसकी यादों में
स्वयं को आत्मसात कर
मांगती हूँ अपना प्यार
आसमान के चाँद से
केसरिया चांदनी में
उसका प्यार
लेकर आया था
मेरे पास
मौन चाहतें
उदास प्यास
अदृश्य समर्पण
कहती रही
मौन व्यथा
देर तक
आसमान के चाँद…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
३ क्षणिकाएं :
तृप्त हो गए
चक्षु
पिघला कर
एक पाषाण से बोझ को
हृदय की
स्मृति श्रृंखला से
.......................
मृत्यु
किसी जीवंत स्वप्न का
यथार्थ है
ज़िंदगी
यथार्थ का
आभास है
प्रीत
आभास में निहित
विश्वास है
...............................
कुछ टूटा
कुछ छूटा
प्रीत पथ के
अंतस से
वेदना साकार हुई
बुत बनी आँखों से …
Added by Sushil Sarna on January 8, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
कलम ....
कहाँ
चल सकती है
बिना बैसाखी के
कागज़ पर
कलम
पडी रहती है
निर्जीव सी
किसी के इंतज़ार में
कलमदान में
कलम
लेकिन
ये न हो तो
आसमान की ऊंचाईयों को
ज़मीन नहीं मिलती
शब्दों को पंख नहीं मिलते
सोच को साकार का माध्यम नहीं मिलता
भाव अन-अंकुरित ही रह जाते हैं
यथार्थ में देखा जाए तो
कलम को बैसाखी की नहीं
अपितु
भाव
बिना कलम की बैसाखी के
मृत समान होते…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2019 at 2:46pm — 2 Comments
विलीन ...
क्या
मिटते ही काया के
सब कुछ मिट जाता है
शायद नहीं
जीवित रहते हैं
सृष्टि में
चेतना के कण
काया के
मिट जाने के बाद भी
मेरी चेतना
तुम्हारी चेतना से
अवशय मिलेगी
इस सृष्टि में
विलीन हो कर भी
काया के मिट जाने के बाद
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 6, 2019 at 2:09pm — 2 Comments
नए वर्ष की भोर ....
क्षण
दिन, महीने
सब को बांधे
चल दिया
पुराना वर्ष
तम के गहन सागर को पार कर
दूर क्षितिज पर
नव वर्ष के गर्भ से
अंकुरित होते
सूरज की अगवानी करने
अच्छा बीता
बुरा बीता
जैसा भी बीता बीत गया
एक स्वप्न
स्वप्न रहा
एक यथार्थ जीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
जीती ख़ुशी
या दर्द जीता
जो भी जीता जीत गया
दर्द पुराना रीत गया
नए वर्ष की…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2019 at 7:49pm — 7 Comments
एक क्षणिका :
कल
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
आसमान होगा
फुटपाथ होगा
आस गर्भ में
बिलखता
कोई पल
विकल होगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 1, 2019 at 7:32pm — 6 Comments
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