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Shashi purwar's Blog – January 2014 Archive (2)

क्षणिकाएं -- शशि पुरवार

क्षणिकाएं --



प्रतिभा --

नहीं रोक सके,

काले बादल

उगते सूरज की किरणें।



सपने --

तपते हुए रेगिस्तान

की बालू में चमकता हुआ

पानी का स्त्रोत, औ

जीने की प्यास.



आशा -

पतझड़ के मौसम में

बसंत के आगमन का

सन्देश देती है,

कोमल प्रस्फुटित पत्तियां।



संस्कार -

रोपे हुए वृक्ष में

मिलायी गयी खाद,

औ खिले हुए पुष्प।



पीढ़ी -

बीत गयी सदियाँ

नही मिट सकी…

Continue

Added by shashi purwar on January 31, 2014 at 10:00pm — 11 Comments

नवगीत - नव वर्ष से है हम सबको। -- शशि पुरवार

नये वर्ष से है ,हम सबको

उम्मीदें कुछ खास

आँगन के बूढ़े बरगद की

झुकी हरिक डाली

मौसम घर का बदल गया ,

फिर

विवश हुआ माली

ठिठुर रहे है सर्द हवा में

भीगे से अहसास

दरक गये दरवाजे घर के

आंधी थी आयी

तिनका तिनका भी उजड़ गया

बेसुध है माई

जतन कर रही बूढी साँसे

आये कोई पास

चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया

नयी जगह घबराय

दुनियाँ उसकी बदल गयी है

कौन उसे समझाय

ऊँची ऊँची अटारियों पे…

Continue

Added by shashi purwar on January 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments

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