पत्थरों के शहर मे दिल ही टूटते थे अभी,
भरम भी टूट गया अब के, अच्छा ही हुआ..
दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..
खुली थी आँखें फिर भी नींद आ गयी जाने,
तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..
ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ..
ख्वाब था या के हादसा था जो गुज़र ही गया,
यकीं से अपने यकीं उठ गया अच्छा ही हुआ..
यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी…
Added by Sarita Sinha on February 13, 2013 at 11:52pm — 16 Comments
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