सखि री ! फागुन के दिन आए
तृषित रूपसी ठगि – ठगि जाए
कलरव से गूँजे अमराई
प्रिय जाने किस देश पड़े ?
हर पल , हर क्षण काटे तनहाई ।
सूना – सूना दिन लागे , साजन की याद सताये
सखि री ! फागुन के दिन आए ।
फूली सरसों और पगडंडी –
आज दिखे सुनसान रे !
करवट लेते रात गुज़र गयी ,
ऐसे हुयी विहान रे !
ऐसे मे कोयलिया रह – रह , हिय की आग बढ़ाए
सखि री ! फागुन के दिन आए…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 25, 2014 at 8:00pm — 6 Comments
मै पागल मेरा मनवा पागल
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
आज फरिश्ता भी गर कोई
इस धरती पर आ जाए
इंसाँ को इंसाँ से लड़ते-
देख देख वह शरमाए ।
बेटी को बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
दूध दही की नदियां थी तब-
उनमें गंदा पानी बहता
द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,
विषधर यहाँ पला करता ।
कान्हा आकर…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 22, 2014 at 10:30am — 12 Comments
मन बौराया
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।
रूप चंपयी
पीत बसन
फैली खुशबू
ऐसा लगता
यंही कंही है चन्दन वन ।
पागल मन
उद्वेलित करने
अरे कौन चुपके से आया ?
पनघट पर
छम छम कैसा यह !
कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?
मृगनयनी वह परीलोक की
या है वह –
सोलहवां सावन !
मन का संयम
टूटा जाये
देख देख यौवन गदराया ।
कंगना खनका
मन…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 21, 2014 at 6:22pm — 16 Comments
कैसा है यह जीवन मेरा !
रोटी की खातिर मैं भटकूँ
नदियों नदियों , नाले नाले ।
अधर सूखते सूरत जल गयी
पड़े पाँव मे मेरे छाले ।
लक्ष्य कभी क्या मिल पाएगा , मिल पाएगा रैन बसेरा ?
कैसा है यह जीवन मेरा !
मैंने तो सोचा था यारो
भ्रमण करूंगा उपवन-उपवन
जाने कैसे राह बदल गयी
बैठा सोचे आज व्यथित मन !
मेरा मन बनजारा बनकर , नित दिन अपना बदले डेरा ।
कैसा है…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 3, 2014 at 9:30pm — 12 Comments
जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
कुहरा आया छाए बादल
टिप - टिप बरसा पानी ।
जाने कब मौसम बदलेगा
हार धूप ने मानी ।
गौरइया भी दुबकी सोचे , जाने क्यूँ सकुचाई धूप !
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
बिजली चमकी , गरजा बादल
हवा चली पछुवाई ।
थर – थर काँपे तनवा मोरा
याद तुम्हारी आयी ।
घने बादलों मे घिर – घिर कर, लेती अब अंगड़ाई धूप !
माघ…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 1, 2014 at 8:40pm — 13 Comments
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