221 1221 1221 122
अपनाया मुहब्बत में पतिंगो ने क़जा को
बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को
है जह्र पियाले में ये मीरा को पता था
बे खौफ़ मगर दिल से लगाया था सजा को
जो लोग सदाकत से करें पाक मुहब्बत
वो बीच में लाते न कभी अपनी अना को
आँधी का नहीं खौफ़ चरागों को भला फिर
समझेंगे उसे क्या जरा ये कह दो हवा को
देखी वो जवाँ झील लिए नूर की गागर
लो चाँद दीवाना चला अब छोड़ हया…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 17, 2017 at 10:30am — 16 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बह्र-ए-मज़ारअ मुसम्मिन अखरब मकफूफ़
यूँ भीड़ में जनाब पुकारा न कीजिये
रुसवा हमें यूँ आप दुबारा न कीजिये
बिलकुल खुली किताब है चेहरा ये आपका
हर रोज पढ़ रहे हैं इशारा न कीजिये
नाराज हो न जाएँ सितारे औ आसमाँ
यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये
मौजे मचल रही हैं तुम्हे देख देख कर
गर पाँव चूम लें तो किनारा न कीजिये
गुलशन उदास होगा परेशान डालियाँ
यूँ रास्ते गुलों से…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 12, 2017 at 8:54am — 23 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ ११२
मेरी वफा का तुम्हें कुछ ख़याल हो के न हो
इनायतों का खुदा की कमाल हो के न हो
मैं हो गई हूँ मुहब्बत में क्या से क्या ए सनम
मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो
बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब
लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो
गुलाब से ही मुहब्बत करे ज़माना यहाँ
शबाब उसमे है पूरा जमाल हो के न हो
कमाँ से कितने उछाले हैं तीर भँवरे यहाँ
ये हाथ में है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 7, 2017 at 10:00pm — 16 Comments
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