Added by शिज्जु "शकूर" on February 24, 2015 at 7:36pm — 14 Comments
मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश।
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on February 13, 2015 at 8:00am — 9 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on February 10, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
जो तेरी है कहानी वही मेरी दास्ताँ
मैं भी अकेला और तू भी तन्हा है वहाँ
हर गाम मुँह चिढ़ाती हुई ज़िन्दगी हमें
हैरान मेरा दिल है परेशान तेरी जाँ
जो तेरी रहगुज़र है नहीं रास्ता मेरा
कोई खिंचाव तो है मगर अपने दरमियाँ
कुछ ख्वाब नातमाम अधूरी सी हसरतें
हो बेकरार तुम भी वहाँ और मैं यहाँ
ग़मगीन तुम उदास मैं भी हूँ “शकूर” और
खामोश ये जहान है चुप-चुप सा आसमाँ
-मौलिक…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 12:23pm — 8 Comments
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