1212 1122 1212 22 /122
सुनें वो गर नहीं,तो बार बार कह दूँ क्या
है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या
शज़र उदास है , पत्ते हैं ज़र्द रू , सूखे
निजाम ए बाग़ है पूछे , बहार कह दूँ क्या
कहाँ तलाश करूँ रूह के मरासिम मैं
लिपट रहे हैं महज़ जिस्म, प्यार कह दूँ क्या
यूँ तो मैं जीत गया मामला अदालत में
शिकश्ता घर मुझे पूछे है, हार कह दूँ क्या
यूँ मुश्तहर तो हुआ पैरहन ज़माने में
हुआ है ज़िस्म का…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 27, 2017 at 7:30am — 25 Comments
1222 1222 122
सुखनवर से वो पहले आदमी है
गलत क्या है अगर नीयत बुरी है
किताबों से कमाई कम हुई तो
सुना है, रूह उसने बेच दी है
अचानक आइने के बर हुये हैं
इसी कारण बदन में झुरझुरी है
लगावट खून से, होती है अंधी
वो काला भी, हरा ही देखती है
चली तो है पहाड़ों से नदी पर
सियासी बांध रस्ता रोकती है
दिवारें लाख मज़हब की उठा लें
अगर बैठी, तो कोयल , कूकती है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 7:30am — 6 Comments
2122 2122 2122
हर हथेली, क़ातिलों की जान ए जाँ है
ज़ह्र उस पे, मुंसिफों सा हर बयाँ है
बाइस ए हाल ए तबाही हैं, उन्हें भी --
बाइस ए तामीर होने का गुमाँ है
एक अंधा एक लंगड़ा हैं सफर में
प्रश्न ये है, कौन किसपे मेह्रबाँ है
किस तरह कोई मुख़ालिफ़ तब रहेगा
जब कि हर इक, दूसरे का राज दाँ है
जिन चराग़ों ने पिया ख़ुर्शीद सारा
उन चराग़ों में भला अब क्यूँ धुआँ है
जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:30am — 20 Comments
( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )
221 2121 1221 212
मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद
क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद
तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?
वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर
दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद
वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के…
Added by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:46am — 24 Comments
22 22 22 22 22 2 ( बहरे मीर )
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
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सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है
इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है
सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे
अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है
मरा मरा सा बगुला है बे होशी में
लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है
फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
परख नली की बातों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 2, 2017 at 8:30am — 15 Comments
2017
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