अस्तित्व को ....
जगाते हैं
सारी सारी रात
तेरे प्रेम में भीगे
वो शब्द
जो तेरे उँगलियों ने
अपने स्पर्श से
मेरे ज़िस्म पर
छोड़े थे
ढूंढती हूँ
तब से आज तक
तेरे बाहुपाश में
विलीन हुए
अपने
अस्तित्व को
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 28, 2017 at 5:50pm — 6 Comments
देर तक .....
जब तुम
जब अंतर तट पर
अपने समर्पण की सुनामी
लेकर आये थे
मेरी देह
कंपकपाई थी
देर तक
जब तुम ने
रक्ताभ अधरों को
तृषा का
सन्देश दिया था
मेरे अधर की
हर रेख
मुस्कुराई थी
देर तक
जब तुम ने
अपनी बंजारी नज़रों से
मुझे निहारा था
मेरी निशा
तुम्हारी बंजारन बन
थरथराई थी
देर तक
जब तुम
मेरी प्रतीक्षा की
प्रथम आहट बने थे
मेरी…
Added by Sushil Sarna on February 26, 2017 at 12:30pm — 2 Comments
कुछ फ़र्द मंच की नज़्र :
न सही तेरी नज़रों को मुहब्बत की तमन्ना मगर !
तेरी नज़रें , नज़रों की हमराज़ तो बन सकती थीं !!1!!
माना करीबी दिल को ख़ुशगवार लगती है !
मगर दूरी में भी कम दिलकशी नहीं होती !!2!!
जाने क्यूँ आ गयी शर्म घटाओं को आज !
शायद किसी ने रुख़ पे ज़ुल्फें बिखेर दीं !!3!!
क्यूँ अँधेरे भी उजले से लगने लगे !
शायद, प्यार रूठा लौट आया है !!4!!
आये न थे तो चश्म तर-बतर थी !
गए पलट के तो कयामत ढा गए…
Added by Sushil Sarna on February 25, 2017 at 2:00pm — 2 Comments
एक सूरज ...
सो गया
थक कर
सिंधु के क्षितिज़ पे
ख़ुदा के दर पे
ज़मीं के
बशर के लिए
चैन-ओ-अमन की
फरियाद लिए
जलता हुआ
एक सूरज
संचार हुआ
नव जीवन का
भर दिया
ख़ुदा के नूर को
ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे में
करता रहा भस्म
स्वयं को
स्वयं की अग्नि में
बशर के
चैन-ओ-अमन
के लिए
एक सूरज
रो पड़ा
देखकर
बशर की फितरत
नूरे बख़्शीश को
समझ न सका
ग़ुरूर में…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:04pm — 9 Comments
नज़्र ....
सहर हुई
तो ख़बर हुई
शब्
सिर्फ
बातों को
नज़्र हुई
रहते ख़ामोश
नज़रों को
जुबां देते
रात यूँ ही
नज़रों के
दरमियाँ गुज़ार देते
लम्स करते बयाँ
सफर निगाहों का
फिर
न सहर की
खबर होती
न शब्
लफ़्ज़ों को
नज़्र होती
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 20, 2017 at 1:34pm — 12 Comments
बे-आवाज़ ....
कहां होती है
रिश्ते के
टूटने की
आवाज़
बस
सिसकता है
देर तक
रुखसारों की ढलानों पर
खारी लकीरों पर
सोया
सोज़ में डूबा
बीते लम्हों का
इक साज़
बे-आवाज़
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 17, 2017 at 9:10pm — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |