१. लगे अंग तो तन महकाए,
जी भर देखूं जी में आये,
कभी कभी पर चुभाये शूल,
का सखी साजन ? ना सखी फूल.
२. गोदी में सर रख कर सोऊँ,
मीठे मीठे ख्वाब में खोऊँ,
अंक में लूँ, लगाऊं छतिया.
का सखी साजन? ना सखी तकिया .
३ उससे डर, हर कोई भागे,
बार बार वह लिख कर माँगे.
कहे देकर फिर करो रिलैक्स.
का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..
४. गाँठ खुले तो इत उत डोले,
जिधर हवा उधर ही हो…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 28, 2014 at 8:00pm — 31 Comments
वसंत
बीता कटु शीत शिशिर
मोहक वसंत आया
पुष्प खिले वृन्तो पर
मुस्काये हर डाली
मादक महक चहुँ दिशा
भरमाये मन आली
तरुण हुई धूप खिली
शीत का अंत आया
बीता कटु शीत शिशिर
मोहक वसंत आया
प्रिया की सांसों सी
मद भरा ऊषा अनिल
अंग अंग उमंग रस
जग लगे मधुर स्वप्निल
कुहूक बोले कोयल
कवि नवल छंद गाया
बीता कटु शीत शिशिर
मोहक वसंत आया…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 24, 2014 at 10:39pm — 8 Comments
आज सुबह से ही ठहरा हुआ है,
कुहरा भरा वक्त.
न जाने क्यों,
बीते पल को
याद करता.
डायरी के पलटते पन्ने सा,
कुछ अपूर्ण पंक्तियाँ,
कुछ अधूरे ख्वाब,
गवाक्ष से झांकता पीपल,
कुछ ज्यादा ही सघन लग रहा है.
नहीं उड़े है विहग कुल
भोजन की तलाश में.
कर रहे वहीँ कलरव,
मानो देखना चाहते हैं,
सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए.
बुने हुए स्वेटर से
पकड़कर ऊन का एक छोर
खींच रहा हूँ,
बना रहा हूँ स्वेटर को
वापस ऊन का गोला.
बादल उतर आया…
Added by Neeraj Neer on February 21, 2014 at 8:16pm — 12 Comments
इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ) का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :
सारंडा के घने जंगलों में
जहाँ सूरज भी आता है
शरमाते हुए,
सखुआ वृक्ष के घने…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 18, 2014 at 9:21am — 13 Comments
मेरी आँखों के सामने
रूका हुआ है
धुएं का एक गुबार
जिस पर उगी है एक इबारत ,
जिसकी जड़ें
गहरी धंसी हैं
जमीन के अन्दर.
इसमें लिखा है
मेरे देश का भविष्य,
प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .
उसमे उभर आयें हैं ,
कुछ चित्र,
जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड
चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले
युवाओं को
खा जाता है,
एक पोसा हुआ भेड़िया,
लोकतंत्र को कर लेता है ,
अपनी मुठ्ठी में…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 13, 2014 at 9:00am — 21 Comments
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.
तुम वसंत हो, अनुगामी
जिसका पर्णपात नहीं.
सुमन सुगंध सी संगिनी,
राग द्वेष की बात नहीं.
शब्द अपूर्ण वर्णन को
ईश्वर के वरदान का.
विकट ताप में अम्बुद री,
प्रशांत शीतल छांव सी,
तप्त मरू में दिख जाए,
हरियाली इक गाँव की.
कहो कैसे बखान करूँ
पूर्ण हुए अरमान का.
मैं पतंग तुम डोर प्रिय,
तुम बिन गगन अछूता…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 9, 2014 at 4:41pm — 33 Comments
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