२१२ २१२ २१२ २१२
ज़िंदगी किस कदर इक सफ़र बन गयी
अनलिखी ये कहानी खबर बन गयी
बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी
बात खींची गयी फिर रबर बन गयी
राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ
सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी
बेवफाई मिली आग दिल में जली
बेअदब आज मेरी नज़र बन गयी
चाह हमने रखी रोशनी की अगर
आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी
ईश्क की इक नज़र कैद में जो मिली
हथकड़ी टूटकर इक तबर बन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:00pm — 14 Comments
212 212 212 212
आज दिल की कहानी छुपा ले गयी
आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी
कैस खुद को भुलाए कोई तू बता
फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी
तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे
दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी
शीत की ये लहर टीस बन कर उठी
हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी
हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो
मौत की ये रवानी खुदा ले गयी
वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”
आस जीवन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 3:30pm — 10 Comments
212 212 212 212
कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी
दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी
ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी
नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी
फूल बन के खिली गुलबदन ये कली
आरजू फिर महक की जवां हो गयी
प्यार की बात हमने छुपाई बहुत
लोग सुनते रहे दासतां हो गयी
होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए
कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी
दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”
आज मन की…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments
तुझसे मिलन के इंतज़ार में
बसाया था बलम
तेरी छवि को यादों में
तेरी प्रीत को ख्वाबो में
करवटों को बाँहों में
और
सिलवटों को रातों में
तुझको पाने की प्यास में
सीखा था सनम
गीतों को गाना
नृत्य को जीना
शराब को पीना
और
ज़ख्मों को सीना
तुझसे मिलन की आस पिया
और सजाया था
कजरा आँखों में
गजरा बालों में
नखरा गालों पे
और
मदिरा होठों…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 11:42am — 11 Comments
पद भार : २४ मात्रा
जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है
मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है
बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती
सागर की लहर मुझे समझाने लगती है
छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में
वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है
आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में
वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है
भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ
अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 7:30pm — 13 Comments
मैं तो शब्द पिरो रही थी यूँ ही
सोच रही थी ख्यालों में खोकर
क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी
जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें
झरने की तरह प्रवाह सी बहती
बस हर शब्द बरसता है बूँद सा
टपकता है मन के बादलों से कही
और जुड़ जुड़ कर बनता जाता है
एक मिसरा..एक शेर..एक मतला
कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़
कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.
कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ
कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द
एहसासों की चादर में…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:30am — 10 Comments
जिंदगी की कहानी सुनाता रहा
दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा
प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर
मुसकुरा कर निगाहें चुराता रहा
तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा
आइना कांच…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 12, 2015 at 1:00pm — 22 Comments
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