१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जो भूखा रो रहा उसको नही रोटी खिलाते हैं
जो बुत हैं मौन मंदिर में उन्हें सब सर झुकाते हैं
जिकर होता है जिसका दोस्तों हर सांस में मेरी
मेरे दुश्मन का लेके नाम वो मेंहदी रचाते है
जहाँ भी चाहते दिल फेंकते आदत है ये उनकी
नजर जब हमसे मिलती है तो वो कितना लजाते हैं
सजाये थे गुलाबी पांखुरी से पथ मगर अब क्या
जो पल्लू झाड़ियों में खुद ही अब उलझाये जाते हैं
गुलाबों की भी किस्मत आशु…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2014 at 1:00pm — 19 Comments
२२१२ १२२२ २२१ २१२
वो बज्म में यूं तनहा क्यूँ खुद आप सोचिये
वो मैकदे मैं प्यासा क्यूँ खुद आप सोचिये
सूरज फलक पे आता है हर रोज वक़्त पर
फिर भी रहा अँधेरा क्यूँ खुद आप सोचिये
बचपन जवान होने से पहले ज़वाँ हुए
है बात इक इशारा क्यूँ खुद आप सोचिये
भरपूर तेल बाती भी दमदार थी मगर
किस ने दिया बुझाया क्यूँ खुद आप सोचिये
कांधा जो देने आया था हर शख्स गैर था
खुद को ही यूं मिटाया क्यूँ खुद आप…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अभी तो म्यान देखी है अभी तलवार देखोगे
हिरन के सींग देखे सींग की तुम मार देखोगे
बहुत खुश होते हो परदे के जिन अश्लील चित्रों पर
बहुत रोओगे जब घर पर यही बाज़ार देखोगे
जिस्म की मंडियों में डोलते हो बन के सौदागर
करोगे खुदकशी बेटी को जब लाचार देखोगे
नदी, नाले, तलैया-ताल यारों देखकर सँभलो
नहीं तो तुम सड़े पानी का पारावार देखोगे
अभी भाता बहुत है ये सफ़र पूरब से पश्चिम…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 26, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
२२१२ १२१२ १२१२ १२
कातिल हँसी तू इक दफा जो हमको देख ले
किस की हो फिर मजाल भी जो तुझको देख ले
औरो से हूँ जुदा तुझे भी होगा कल यकी
मलिका-ए- हुस्न पहले जो तू सबको देख ले
दिलकश हसींन कातिलों में कुछ तो बात है
धड़कन थमें जो इक दफा भी उसको देख ले
दिल चाहता जिसे उसे मैं कहता हूँ खुदा
जब सामने खुदा तो कोई किसको देख ले
सागर की आरजू कभी भी थी नहीं मेरी
आँखों में जाम भर के ही तू हमको देख…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
221 2122 222 1222
बीरान जिन्दगी में वो आयी बहारों सी
सहरा में तपते जैसे कोई आबशारों सी
लगती है इक ग़ज़ल की ही मानिंद वो मुझको
उसकी तो हर अदा ही हो जैसे अशारों सी
जुल्फों को जब गुलों से है उसने सजाया तो
मुझको लगी अदा ये यारों चाँद तारों सी
जब साथ साथ चलके भी वो दूर रहती है
तब लगती इक नदी के ही वो दो किनारों सी
मौसम हसींन सर्द है गर हो गयी बारिश
होगी हसींन सी कली वो बेकरारों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 5, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
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