२१२२ २१२२ २१२२ २१२
वो मेरी खामोशियों को हाँ म हाँ समझा किया
मुझको धरती और खुद को आसमाँ समझा किया
पहना जब तक सादगी और शर्म का मैंने लिबास
ये ज़माना यार मुझको नातवाँ समझा किया
उस कहानी के सभी किरदार उसको थे अज़ीज़
बस मेरे किरदार को ही रायगाँ समझा किया
जिस्म मेरा रूह मेरी जिस चमन पर थी निसार
वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया
जिसकी दीवारों में माज़ी सांस लेता था कभी
यादों से भरपूर घर को वो…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 17, 2018 at 2:30pm — 18 Comments
2122 2122 2122 2122
इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब
चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब
जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला
पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब
जो रफू कर दें किसी औरत के आँचल को नज़र से
अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब
हो गये पत्थर के जैसे फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ
हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब
क्या बचा है मर्म इसमें क्या करोगे इसको…
Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments
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