221 2121 1221 212
जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया
इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया
आफ़ाक़ के सफर में नहीं मिलती मंज़िलें
हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया
जलने लगे चराग सितारे चमक उठे
दीदारे ताबे हुस्न सरे शाम हो गया
बेदार शब तमाम जला चाँद अर्श पर
जाहिर जुनूने इश्क़ सरे बाम हो गया
तेरी मुहब्बतों से मुनव्वर किया दयार
आलम फ़रोज़ शम्स को आराम हो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 29, 2015 at 8:30am — 13 Comments
2122 1212 112/22
जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 3:32pm — 26 Comments
2122- 2122- 212
ख़्वाब से डरने लगा हूँ इन दिनों
नींद से मैं भागता हूँ इन दिनों
धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर
मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों
वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ
इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों
मुझपे भारी है हर इक लम्हा बहुत
फिक्र की तह में दबा हूँ इन दिनों
आइना हटकर परे मुझसे कहे
पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों
कोई बतलाये मुझे मैं कौन हूँ
पहले क्या था और क्या…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 12, 2015 at 9:54am — 21 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 4:52pm — 22 Comments
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