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Rahila's Blog – April 2017 Archive (1)

*माटी का गुरूर* राहिला (लघुकथा)

"अब क्या करें? वैध जी तो दूसरे गाँव गये हुए है, कल तक लौटेगें | इतने दूर वापस भी नहीं जा सकते ।शाम होने को है, इतने छोटे गाँव में कहाँ रुकेंगे?"कहते हुए महिला के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गयी।

"फ़िक्र ना कर, बलवीर सर इसी गाँव का तो हैं जिन्होंने मुझे इस वैध के बारे में बताया था। उन्हीं के घर रूक जाते हैं|" पति ने उसे आश्वासन दिया|

नाम सुनते ही उसे याद हो आया वह दिन ,जब फौजी पति पहली बार उसे अपने साथ ले गये थे और वहाँ वह पति के सीनियर इन्हीं बलवीर के यहाँ भोजन पर आमंत्रित हुई थी। न… Continue

Added by Rahila on April 4, 2017 at 5:52pm — 12 Comments

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