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Veerendra Jain's Blog – April 2011 Archive (3)

ऐसा भी एक मन्ज़र...

 

पैगाम लिए पंछी चल दिए सुबह को बुलाने ,
बांसुरी से गुजरती शीतल हवा कुछ गुनगुनाई |
 
पीली धूप पहन किरणों ने झाँका आसमान से ,
बाहें फैलाकर मौसम ने फिर ली अंगड़ाई |
 
सिमटने लगी रज़ाई…
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Added by Veerendra Jain on April 27, 2011 at 12:15pm — 9 Comments

कश्मकश ....

 

एक दोराहे पे खड़ा है दिल मेरा ,
एक अजीब सी कश्मकश
चलती रहती है मेरे अंदर
दोस्ती और मोहब्बत की रस्सी से बने पुल पर |
 
उसकी ख़ुशी में जो मुस्कुराना चाहूँ
तो मोहब्बत रोकती है…
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Added by Veerendra Jain on April 20, 2011 at 11:30am — 9 Comments

Sachin and World Cup...

मेरे ख़्वाबों से हकीक़त का क़रार है तू ,

मुद्दतों किये हर पल का इंतज़ार है तू ,
तुझसे जुड़कर मेरा नाम मुकम्मिल नज़र आता है |
 


आ…
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Added by Veerendra Jain on April 3, 2011 at 11:30am — 5 Comments

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"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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