२२ २२ २२ २२ २२ २
हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के
रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के
धीमे धीमे होती है ये रात जवाँ
ख़्वाब मचलते हैं प्यासे पैमानों के
कैसे डूबे भँवरों में किश्ती नादां
सिखलाते हमको गड्ढे रुखसारों के
गोया नभ से चाँद उतर आया कोई
चेह्रे से हटते ही साए बालों के
पार उतर आये हम तूफां से बचकर
मस्त सफीने पाए तेरी बाहों के
खूब शफ़ा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 25, 2016 at 8:00pm — 19 Comments
२१२२ १२१२ २२
हुस्न गर बावफ़ा नहीं होता,
दिल कभी आशना नहीं होता
खेलना दिल से तोड़ देना फिर
ये कोई कायदा नहीं होता
दिल्लगी से हुए तमाशे का
हर कहीं तज़करा नहीं होता
जान पाता कभी नहीं उसको
,मैं अगर आइना नहीं होता
मार देती ये तिश्नगी मुझको,
काश ये मयकदा नहीं होता
मुश्किलों से निजात पाने को,
मौत ही रास्ता नहीं होता
छेड़ता वो न बारबार इसको,
जख्म मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 21, 2016 at 11:18am — 8 Comments
उसके गले में गोया सहस्त्रों केक्टस उग आये हों
थोड़ी थोड़ी देर में उनको निगलने की कोशिश में
गले की कोशिकाएँ कभी खिंच रही थी
कभी फूल रही थी
साँसें नियंत्रण खो रही थी
आँखों में दर्द के लाल डोरे उभर आये थे
मुझे ऐसा लगा मैं बहते दरिया को बाँध से रोकते हुए देख रही हूँ
जो कितना तकलीफ देह है
कुछ देर और देखती रहूंगी तो वो मेरी आँखों
के रास्ते बह चलेगा
क्यूँ नहीं उस दरिया को मुक्त किया जा रहा
भावनाओं पर नियंत्रण…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 11, 2016 at 10:24am — 2 Comments
१२२२ १२२२ १२
जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल
मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल
कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल
कदूरत के समंदर चार सू
किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल
न खिड़की है न रोशनदान है
जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल
सुलगते तल्खियों के अर्श पे
सितारे गूँथती मेरी ग़ज़ल
लिखे हर बार लफड़े रोज के
कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल
अमन का रंग गर मिलता यहाँ
दिलों को लूटती मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:16am — 26 Comments
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