तेरे मन में स्वार्थ भले हो
वह इसको सौभाग्य मानती----
मानव की है फिदरत देखो
सब्ज बाग़ दिखा पत्नी को
बाते करके चुपड़ी चुपड़ी
क्षणभर में ही खुश कर देता |
सिद्ध करने को मतलब अपना
प्यार भरी बातो से उसका
क्षण भर में ही आतप हरकर
गुस्सा उसका ठंडा करता |
तेरे मन में स्वार्थ भले हो
वह इसको सौभाग्य मानती------
अति लुभावन वादे करके
बातो ही बातो में पल में
उसके भोले मन को ही
वह…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 29, 2013 at 2:58pm — 15 Comments
कुंडलिया छंद
पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर हार,
महासमर के वार का, धर्म बना आधार |
धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,
कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का
दुशासन मढ़े…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
कुंडलिया छंद
नारी तू अबला नहीं, अपनी ताकत जान
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 11:30am — 22 Comments
नव-संवत्सर कीशुभ कामनाए
-लक्ष्मण लडीवाला
बीत गया वर्ष विगत,नव संवतसर आया,
गत का आकलन कर,आगे अवसर लाया।
स्व का गत रहा कैसा, स्व हो अब कैसा,
करे नवा कुछ ऐसा, हो दो पग आगे जैसा।
नव-संवत्सर का प्रारम्भ होता दुर्गा पूजा से,
घट-स्थापना, उगा नया धान नए जवारे से ।
शक्ति की प्रतिक मान करते देवी कि पूजा,
प्रेरणा स्वरूप है देवी,मिलती जिनसे ऊर्जा |
जिसके बिना चल न सके दुनिया का…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 3:30pm — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2013 at 9:30am — 15 Comments
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