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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog – April 2015 Archive (6)

ख्वाब

शायद हो ख्वाब

तुम्हे व्योम में उड़ते देखा

तुम्हारे बाल बल खाते

और

लहराता प्यार का आँचल

उड़ने की होती है अपनी ही मुद्रा

परियो के अनुराग सी

नैनों के राग सी

प्रात के विहाग सी

इस उड़ने में नहीं कोई स्वन   

या पद संचालन की अहरह धुन

उड़ते ही रहना मीत

धरणि पर न आना

रेशम सी किरणों पर मधु-गीत गाना

दूर तो रहोगी, पर दृग-कर्ण-गोचर

पास आओगी तो

फिर एक अपडर

धरती पर टिकते ही परी जैसे…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 19, 2015 at 11:17am — 7 Comments

मिलन की आश (अन्त्यानुप्रास)

सरगम भरता, कल-कल करता, 

झर-झर  झरता  निर्झर  सस्वर I

तम को छलता, पग-पग चलता,

धक्-धक् जलता सूरज सत्वर  II

 

सन-सन बहता, गुम-सुम रहता, 

क्या-कुछ  कहता रह-रह मारुत  I…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 4:30pm — 20 Comments

न जाने किये कौन से रतजगे हैं /// हिंदी गजल (प्रयास जारी}

 

  मुतकारिब मुसम्मन सालिम

 122   122   122   122

 

न जाने  किये कौन से रतजगे हैं      

मुझे आप से तुम वो कहने लगे है

 

पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा

पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं

 

हुआ  पाटली नैन  का जोर जादू

खड़े  इंद्र  गन्धर्व सब तो ठगे हैं

 

जिन्हें काम का देवता लोग कहते 

तुम्हे  देखकर काम उनके जगे हैं

 

हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन

कि  लगते मुझे वे सगों से…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 8, 2015 at 8:20pm — 16 Comments

असर क्या करेंगी अलाये-बलाये /// गजल (एक प्रयास )

मुतकारिब मुसम्मन सालिम

१२२   १२२   १२२   १२२

तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें

झरें इस जगत की सभी वेदनायें I  

 

नहीं है किया काम बरसो से अच्छा   

चलो नेह  का एक दीपक जलायें I

 

गरल प्यार में इस कदर जो भरा है  

असर  क्या  करेंगी अलायें-बलायें  I  

 

तुम्हारी  अदा है  धवल -रंग ऐसी   

कि शरमा गयी चंद्रमा की कलायें I

 

जगी आज ऐसी विरह की तड़प है

सहम सी गयी  है सभी चेतनायें…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2015 at 8:00pm — 34 Comments

कहाँ आज जश्ने बहारा /// हिन्दी गजल (एक प्रयास)

 मुतकारिब मुसद्दस सालिम

     १२२   १२२   १२२

 

अधूरा  मिलन  है  हमारा

नहीं  प्यार  ऐसा  गवारा I

 

मिले गर न हम इस जनम में

जनम  साथ लेंगे  दुबारा I

 

भटकता अकेला गगन में

विपथ एक टूटा   सितारा  I

 

समय की बड़ी बात होती

कहाँ आज जश्ने बहारा I

 

तपस्या सदृश मूक जीवन

सभी ने जतन से संवारा I

 

अभी से थका जीव-मांझी

बहुत दूर पर है किनारा I  

 

कहाँ…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:30pm — 18 Comments

चाँद आकाश में खो गया - हिन्दी गजल (एक प्रयास)

मुतदारिक मुसद्दस सालिम

212     212          212

सो गया सो गया सो गया

चाँद आकाश  में खो गया I

 

ढूंढते  थे जिसे  उम्र भर

लो यहीं था अभी तो गया I

 

प्यार का बीज मन में मेरे

कोई चुपके से आ बो गया I

 

नैन जबसे  उलझ ये गये

चैन ना जाने क्या हो गया I

 

चोट खाया  बहुत प्यार में

वो  दिवाना अभी जो गया I

 

था  सहारा बहुत  प्यार से  

दूर लेकिन  चला वो गया…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 2:00pm — 20 Comments

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