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May 2015 Blog Posts (226)


सदस्य कार्यकारिणी
किसने कहा प्रेम अंधा होता है -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

किसने कहा प्रेम अंधा होता है

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किसने कहा प्रेम अंधा होता है

रहा होगा उसी का , जिसने कहा

मेरा तो नहीं है

देखता है सब कुछ

वो महसूस भी कर सकता है

जो दिखाई नहीं देता उसे भी

वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और

बुराइयाँ भी

वो ये भी जानता है कि ,

उसका प्रेम,  पूर्ण है ,

बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध

साथ मे बह रहे हैं ,

डूब उतर रहे हैं साथ साथ

व्यर्थ की…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 19 Comments

गुज़रा ज़माना

वो ज़माना ही कुछ और था

हौसलों और उम्मीदों का दौर था !

आसमां के सितारे भी पास नज़र आते थे!

हर हद से गुज़र जाने का दौर था!!

माना कि मुफलिसी भरी थी वो ज़िन्दगी!

उस ज़िन्दगी में जीने का, मज़ा ही कुछ और था!!

नींद आती नही महलों के नर्म गद्दों पर!

झोपडी के चीथड़ों पर सोने का, मज़ा ही कुछ और था!!

न जाने क्यों हर वो शख़्स ख़फ़ा ख़फ़ा सा नज़र आता है!

मुस्कुराकर कर जिनसे गले लग जाने का,मज़ा ही कुछ और था!!

अब तो दिल की बातें दिल…

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Added by Mala Jha on May 1, 2015 at 11:56am — 14 Comments

है तमस भरी कि हवस भरी- ( एक तरही ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

11212     11212     11212      11212

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नई ताब दे  नई सोच दे  जो पुरानी है   वो निकाल दे

रहे रौशनी  बड़ी देर तक  वो दिया तू अब यहाँ बाल दे

***

है तमस भरी  कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है

तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी  मेरी रात अब तो उजाल दे

***

जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं

मेरे  पाँव भी  हुए  नग्न हैं  मेरी  राह अब  तू बुहार दे

***

न तो पीर दे  न चुभन ही दे मेरे पाँव में  ये…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments

सडक एक नदी है। बस स्टैण्ड एक घाट।

 

 सडक एक नदी है।

बस स्टैण्ड एक घाट।

इस नदी मे आदमी बहते हैं। सुबह से शाम तक। शाम से सुबह तक। रात के वक्त यह धीरे धीरे बहती है। और देर रात गये लगभग रुकी रुकी बहती है। पर सुबह से यह अपनी रवानी पे रहती है। चिलकती धूप और भरी बरसात मे भी बहती रहती है । भले यह धीरे धीरे बहे। पर बहती अनवरत रहती है।



सडक एक नदी है इस नदी मे इन्सान बहते हैं। सुबह से शाम बहते हैं। जैसा कि अभी बह रहे हैं।

बहुत से लोग अपने घरों से इस नदी मे कूद जाते हैं। और बहते हुये पार उतर जाते हैं। कुछ लोग…

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Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 1, 2015 at 10:27am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -- खिड़कियों से झाँकता क्या है ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222      1222      1222 

अगर दिल साफ है, आ सामने, कह मुद्दआ क्या है

खुला दर है तो फिर तू खिड़कियों से झाँकता क्या है

 

यहाँ तू थाम के बैठा है क्यूँ अजदाद के क़िस्से

बढ़ आगे छीन ले हक़ , गिड़गिड़ा के मांगता क्या है



अगर भीगे बदन के शेर पे इर्शाद कहते हो

तो फिर बारिश में मै भी भीग जाऊँ तो बुरा क्या है

 

जो पुरसिश को छिपाये हाथ आयें हैं उन्हें कह दो

मुझे निश्तर न समझाये , कहे ना उस्तरा क्या है

 

दुआयें जब…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 10:00am — 22 Comments

सामान्य ज्ञान का प्रश्न---डॉo विजय शंकर

व्यवस्था का मान करें ,

उस से ज्यादा जो व्यवस्था में हैं ,

उनका सम्मान करें।

वे कौन हैं , कहाँ से आये हैं ,

पूछ कर न अपना

अपमान करें।

जो व्यवस्था में हैं ,

वे माननीय , आदरणीय हैं ,

पूज्यनीय , वन्दनीय हैं ,

ओजस्वी ,प्रकाशमान

देवतास्वरूप हैं ,

उनकें ज्ञान पर , उनकें

सामान्य ज्ञान पर प्रश्न न करें ,

वे स्वयं सामान्य ज्ञान का प्रश्न हैं,

बड़ी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान

के प्रश्न पत्रों में पूछे जाते हैं ,

उन पर जो सही… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 9:42am — 14 Comments

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