For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है तमस भरी कि हवस भरी- ( एक तरही ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

11212     11212     11212      11212
******************************************
नई ताब दे  नई सोच दे  जो पुरानी है   वो निकाल दे
रहे रौशनी  बड़ी देर तक  वो दिया तू अब यहाँ बाल दे
***
है तमस भरी  कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है
तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी  मेरी रात अब तो उजाल दे
***
जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं
मेरे  पाँव भी  हुए  नग्न हैं  मेरी  राह अब  तू बुहार दे
***
न तो पीर दे  न चुभन ही दे मेरे पाँव में  ये जो फाँस है
नहीं मिल रही  कहाँ गुम हुई  तुझे है पता तू निकाल दे
***
कभी मयकशी  में हूँ डूबता  कभी आरती  तेरी कर रहा
मेरा इश्क भी  कोई इश्क है  न खुश करे  न मलाल दे
***
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
***
******यह गजल मूलतः "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-58 के लिए लिखी थी किंतु किसी

कारणवश उसमें शामिल न हो सका । प्रबु़़द्ध जनों से आग्रह है कि इसमें

निहित कमियों से अवगत कराएं और सुझाव दें ।

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 4:02pm

अच्छा प्रयास है आ. लक्ष्मण जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 1:12am
नई ताब दे नई सोच दे जो पुरानी है वो निकाल दे
रहे रौशनी बड़ी देर तक वो दिया तू अब यहाँ बाल दे
ख़ूब आदरणीय लक्ष्मण जी, बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 9:45pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल बहुत अच्छी कही है , एक शे र में काफिया दोष है जिसे आ. कबीर भाई बता चुके हैं , देख लीजियेगा ॥ आपको गज़ल के लिये बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 8:55pm
न तो पीर दे न चुभन ही दे मेरे पाँव में ये जो फाँस है
नहीं मिल रही कहाँ गुम हुई तुझे है पता तू निकाल दे॥
बहुत खूब, पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है , आदरणीय लक्षमण धामी जी , बधाई, सादर।
Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:41pm

खूबसूरत ग़ज़ल कही है ..बधाई आपको

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 1, 2015 at 6:45pm

आदरणीय धामी सर!

कभी मयकशी  में हूँ डूबता  कभी आरती  तेरी कर रहा
मेरा इश्क भी  कोई इश्क है  न खुश करे  न मलाल दे     वाह! कमाल कि गिरह लगाई है सर! क्या कहने!

इस शेर के अलावा और कोई शेर प्रभावित नही करते! आ० धामी सर आपके स्तर की रचना नही हो पाई है!

शायद व्यस्तता का परिणाम हो!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 3:38pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद हाज़िर है।
बुहार को बदलना होगा।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2015 at 3:31pm

अच्छा प्रयास है ..बधाई..आ. समर साहब की बात से सहमत हूँ आल के साथ आर काफ़िया दोषपूर्ण है 
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 2:48pm
जनाब लक्ष्मण धामी जी,आदाब,तरही मिसरे पर बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

"जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं
मेरे पाँव भी हुए नग्न हैं मेरी राह अब तू बुहार दे"

इस शैर में क़ाफ़िया बदल गया है,कृपया देख लीजियेगा |
Comment by narendrasinh chauhan on May 1, 2015 at 2:23pm

कभी मयकशी  में हूँ डूबता  कभी आरती  तेरी कर रहा
मेरा इश्क भी  कोई इश्क है  न खुश करे  न मलाल दे

खूब सुन्दर ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
Thursday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service