मुक्तिका :
भंग हुआ हर सपना
संजीव 'सलिल'
*
भंग हुआ हर सपना,
टूट गया हर नपना.
माया जाल में उलझे
भूले माला जपना..
तम में साथ न कोई
किसे कहें हम अपना?
पिंगल-छंद न जाने
किन्तु चाहते छपना..
बर्तन बनने खातिर
पड़ता माटी को तपना..
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Added by sanjiv verma 'salil' on May 31, 2011 at 12:02am — No Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments
मुक्तिका:
तुम क्या जानो
संजीव 'सलिल'
*
तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.
नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..
उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.
कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..
चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.
कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..
सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.
चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 3, 2011 at 2:01pm — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 1, 2011 at 5:13pm — No Comments
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