शंक निशंक त्रिशंकु मन,
मचि रही उथल पुथल,
जीत हार का फेर करत
उठा पटक यह त्रिशंकु मन।
अंतर्द्वंद हिंडोल के बीच,…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 30, 2013 at 5:30pm — 4 Comments
मान मान मन मूरख मेरे,
मत फंस विषय जाल मे,
जो सुख चाहे भाग विषयन से,
मत इन फंद फंसे री ।
जनम जनम नहि इनसे उबरें,
ताते ध्यान धरे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 29, 2013 at 8:30am — 7 Comments
आकंठ डूबे हुये हो क्यों,
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।
क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।
तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
(अप्रकाशित एवं मौलिक)
Added by annapurna bajpai on May 26, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
नाथ तुम अनुपम जाल बिछायो,
जगत को यहि मे भरमायो।
गरभवास मे करी प्रतिज्ञा,
यहाँ पर करि बिसरायो।
मातु पिता की गोदी खेलि के,
बाला पनहि बितायो ।
ज्वान भयो नारी घर आई,
तामे मन ललचायो।
सुंदर रूप देखि के भूल्यो,
जगत्पिता बिसरायो।
प्रौढ़ भए पर सुत औ नारी,
लई अंग लपटायो ।
आशा प्रबल भई मन भीतर,
अनगित पाप करायो।
पुण्य कार्य नहीं एकहु कीन्हे,
चारो पनहि बितायो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 26, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
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