मानव दौड़ें राह पर, थकते उसके पाँव
आत्मा नापे दूरियाँ, नगर डगर हर गाँव |
थक जाते है पाँव जब, फूले उसकी साँस,
मन तो अविरल दौड़ता,मन में हो विश्वास |
सार्थक मन की दौड़ है, भौतिकता को छोड़
सही राह को जान ले, उसी राह पर दौड़ |
पञ्च तत्व से तन बना, जिसका होता अंत
बसते मन में प्राण है, जिसकी दौड़ अनंत…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 29, 2013 at 6:17pm — 15 Comments
घर लौटकर पूत विदेश से
माँ से बोला बड़े प्यार से,
आया मै तुमको लेने माँ
यहाँ अकेली अब न रहना |
इस घर को अब बेच चलेंगे
खाली घर में भूत बसे माँ,
संग में मेरे अब तू रहना
उम्र नहीं यह तन्हा रहना |
उमडा उसपर माँ का प्यार,
बेच दिया सारा घरबार,
पोर्ट पर जाकर माँ से बोला-
माँ तू यहाँ पर बैठे रहना |
माँ बोली क्या बात है बेटा
पूत कहे कुछ बात नहीं है,
सामान की है जांच कराना,
माँ बोली जा, जल्दी आना…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:00pm — 15 Comments
सरबजीत शहीद हुए, सत्ता करे न काम
छोड़ गया दो बेटियाँ, जो देगी अंजाम |
याद करो इतिहास को, और इंदिरा नाम,…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 3, 2013 at 5:30pm — 22 Comments
वीर छंद (३१ मात्राएँ/ १६ मात्राओं पर यति, १५ मात्राओं पर पूर्ण विराम/ अंत गुरु लघु)
सरबजीत भव पार गया है ---छोड़ गया वह देश जहान।
अमर शहीदो से मिलने वह-- चला गया देकर फरमान। …
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2013 at 3:00pm — 22 Comments
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