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***
उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ
चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ
.
चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने
वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ
.
शब्दों की कमी तो मुझे हरदम ही रही है
खामोश ग़ज़ल कोई सुनाने के लिए आ
.
सागर ये गमों का कहीं तट तोड़ न जाए
ऐ राहते जां बांध बनाने के लिए आ
.
रौशन दरो दीवार है झिलमिल है सितारे
ऐ चाँद मेरे मुझको…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on May 8, 2017 at 4:00pm — 10 Comments
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