कच्ची रोटी भी  प्रेमिका की भली लगती है
 बीबी अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है |
 बीबी  हँस दे  तो कलेजा ही  दहल जाता है
 प्रेयसी  रूठी  हुई  भी  तो  भली  लगती है |
 नये - नये  में  बहु  कितनी  भली लगती है
 फिर  ससुर - सास को वो बाहुबली लगती है |
 कलि  अनार की  लगती  थी ब्याह से पहले
 अब मैं कीड़ा हूँ  और वो छिपकली लगती है |
 फिर  चुनी  जायेगी  दीवार में पहले की तरह
 ये    मोहब्बत  सदा  अनारकली  लगती  है |
 इस  शहर …
Added by अरुण कुमार निगम on June 26, 2012 at 9:14pm — 4 Comments
 कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
 शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
 निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल…
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2012 at 12:30am — 12 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
    
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |