मुझको तो गुज़रा ज़माना चाहिए।
फिर वही बचपन सुहाना चाहिए।
जिस जगह उनसे मिली पहली दफा,
उस गली का वो मुहाना चाहिए।
तैरती हों दुम हिलातीं मछलियाँ,
वो पुनः पोखर पुराना चाहिए।
चुभ रही आबोहवा शहरी बहुत,
गाँव में इक आशियाना चाहिए।
भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,
छोड़ जाने का बहाना चाहिए।
सागरों की रेत से अब जी भरा,
घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।
घुट रहा दम बंद पिंजड़ों में…
Added by कल्पना रामानी on June 30, 2014 at 2:30pm — 21 Comments
माँ ने आज उसके हाथ पर पूरी गोल रोटी और गुड का टुकड़ा रखा तो गोलू की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। पलटकर आसमान की ओर देखा। पूनम का गोल चाँद चमक रहा था। दोनों की नज़रें मिलीं और एक मीठी सी मुस्कान हवा में घुल गई।
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by कल्पना रामानी on June 24, 2014 at 9:00am — 17 Comments
इन्द्र्देव ने भेज दिया है
धरती को पैगाम।
बूँदों से है लिखी इबारत।
बदलेगी जन-जन की किस्मत।
मानसून इस बार करेगा
सबके मन की पूरी हसरत।
भर चौमासा घन बरसेंगे
झूम झूम अविराम।
हरषेगा खेतों में हँसिया।
अन्न बीज रोपेगा हरिया।
उड़ जाएगी निकल नीड़ से,
बेबस हो महँगाई…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on June 22, 2014 at 2:42pm — 12 Comments
मात्रिक छंद
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।
घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।
भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।
बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,
हँसकर हर किरदार, किताबें कहती हैं।
खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,
लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।
कभी न भूलो जो संदेश…
Added by कल्पना रामानी on June 17, 2014 at 2:30pm — 22 Comments
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