भूल कर सब प्रेम करुणा त्याग तप बलिदान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा
राम सा आदर्श मानव औ' भरत सा भ्रात मैं हूँ
दुश्मनों के वक्ष पर करता रहा आघात मैं हूँ
मैं प्रतिज्ञा भीष्म की हूँ, मैं युधिष्ठिर धर्मकारी
पार्थ का गांडीव मैं हूँ, मैं सुदर्शन चक्र-धारी
शौर्य है श्रृंगार मेरा, रण-विजय ही गान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
भूमिका मेरी यहाँ बेटा, पिता, पति, भ्रात की है
माप रखता जो हमेशा…
Added by नाथ सोनांचली on June 15, 2020 at 11:30am — 13 Comments
क्रोध तम मद-लोभ ईर्ष्या में पड़ा संसार सारा
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
छोड़ अन्तस का शिवालय भ्रम मनुज लाने चला है
शोर के गहरे तमस में मौन को पाने चला है
पास उसके आत्म दर्पण है नहीं जो राह रोके
जी रहा है वह स्वयं की जिन्दगी में कण्ट बोके
सत्य है नेपथ्य में बस मूर्खता मन में अड़ी है
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
मस्त सब हैं छोड़कर सिद्धांत सारे सभ्यता के
मन अपाहिज वस्त्र चिथड़े किंतु साधक भव्यता के
जब पलट के…
Added by नाथ सोनांचली on June 12, 2020 at 7:00pm — 4 Comments
जानकर औक़ात अपनी वो हदों में क़ैद है
हर परिंदा आज अपने घोंंसलों में क़ैद है।।
जीत लेगा मौत को भी आदमी यूँ एक दिन
इस तरह की सोच सबकी हसरतों में क़ैद है।।
क्रोध लालच दम्भ नफ़रत ज़ात मजहब को लिए
हर कोई अनजान सी परछाइयों में क़ैद है।।
कब कहाँ किस को दग़ा दें रहनुमा इस देश के
झूठ मक्कारी तो उनकी आदतों में क़ैद है।।
जिस शजर की छाँव में बारात सजती थी कभी
आज वो वीरान बनके रतजगों में क़ैद है।।
टूट कर ख़ामोश जो…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 5, 2020 at 3:00pm — 15 Comments
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