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Coontee mukerji's Blog – June 2013 Archive (6)

कैलकुलेटर

कैलकुलेटर

‘’सुनती हो बेगम! सोने का दाम मार्केट में बहुत गिर गया है’’

‘’तो मैं क्या करूँ मियाँ?’’

‘’अजी बेगम जल्दी से तैयार हो जाओ ,मार्केट चलते हैं आज तुम्हें सोने से लाद दूँगा’’

‘’क्या.....?’’ राधा मुँह बाये हाथ में करछी पकड़े पति के पास आयी जो बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था.

‘’क्या कहा आपने? मुझे सोने से लादोगे? एक जोड़े कंगन के लिये तो सारी जिंदगी तरस गयी.’’ इतना कहकर राधा अपनी नाराज़गी जताती हुई दुबारा रसोईघर में चली गयी.

महिपाल पत्नी को मनाने के लिये उसके…

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Added by coontee mukerji on June 30, 2013 at 9:24pm — 16 Comments

यह घर तूम्हारा है

यह घर तुम्हारा है

1

फूलों के हिंडोले में बैठ कर

घर आयी पिया की ,

तमाम खुशियों और सपनों को ,

झोली में भर कर .

दहलीज़ पर कदम रखते ही

मेरे श्रीचरणों की हुई पूजा

चूल्हे पर दूध उफ़न कर कहा –

‘’ बधाई हो ! लक्ष्मी का घर में आगमन हुआ है ‘’

सबने शुभ शकुन का स्वागत किया .

बड़े जनों ने कहा – ‘’ आज से यह घर तुम्हारा है .’’

कुछ दिनों बाद -

मेरी कल्पनाओं ने उड़ान भरनी चाही

सपनों ने अपने पंख फैलाये

तब –

उड़ने को मेरे पास आकाश…

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Added by coontee mukerji on June 27, 2013 at 5:24pm — 19 Comments

मैं नदी

मैं नदी –

पहाड़ों से उतरी,

उन्मुक्त बहती

कल कल करती मतवाली

मैं नदी -

गाँव खलिहानों से होती

बच्चों की किलकारियों सी,

खेतों में ठुमकती

मैं नदी -

सरदी की धूप,

षोडसी की चोटी सम लम्बी

लहराती इठलाती बलखाती

मैं नदी जो कभी थी.

2

समय का बदलता रूप -

हाइटेक का ज़माना,

तरक्की की चरमसीमा,

बलिदान स्वरूपा

मैं नदी अधुना.

झुलसती गरमी

बीच शहर,

कूड़े का ढेर

अछूत सी पड़ी,

मैं नदी…

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Added by coontee mukerji on June 22, 2013 at 3:05am — 15 Comments

आकाशदीप

आकाशदीप
‘’ आओ ! आओ ! मेरे पास आओ ! ! ‘’
हर शाम आकाश का निमंत्रण आता ,
उसे पाने का हर सम्भव प्रयास ,
साम दाम दण्ड भेद मैंने अपनाया .
मन की तृष्णा कहूँ या कमज़ोरी ,
सबने उन्नति कह स्वागत किया .
मेरे रास्ते में अनेक तारेपुंज थे ,
पर आजीवन एक ही लक्ष्य है साधा .
आकाशदीप पाने हेतु पथ में ,
कितने तारे टूटे कितने हुए धूल ,
आया भी हाथ में एक बुझा दीपक ,
लोभ में नष्ट हुआ जीवन समूल .
( मौलिक व अप्रकाशित रचना )

Added by coontee mukerji on June 10, 2013 at 11:13am — 1 Comment

दान का माहात्म्य

दान का माहात्म्य

मैं बचपन से अपनी माँ के साथ प्रवचन संकीर्तन में जाती थी . वहाँ दान की महिमा खूब गहराई से

समझायी जाती थी . मुझे ईश्वर भक्तों पर अपार श्रद्धा होती . बड़ी होकर जब मैं कमाने योग्य हुई तब अपने वेतन के पैसों का एक हिस्सा दान कर देती . बहुत जल्द ही मैं मशहूर हो गयी . आये दिन भक्तों का मेला मेरे घर में लगा रहता . उनकी सेवा कर मैं धन्य हो जाती .

मेरे गाँव में ISKCON ने भव्य मंदिर के साथ एक आश्रम बनाया . उसमें बहुत सारे भक्त रहने लगे . वहाँ दान की प्रक्रिया खूब चलती .…

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Added by coontee mukerji on June 6, 2013 at 10:05pm — 8 Comments

ख्वाबों के दिन

ख्वाबों के दिन

ख्वाबों के दिन

कब मन को तड़पाते नहीं !

सुबह की पहली किरण

जब खिड़की पर थाप देती,

चिड़ियों की चहचहाहट से

जब खुलती हैं आँखें -

ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई

बिस्तर की सलवटों पर

सिकुड़ी सिमटी सी , क्यों

तटस्थ हो जाती है ?

वक़्त का हर पल

एक सुनहरा ख्वाब दिखलाता है.

कुछ सपनों के दिन,

कुछ अधूरी रातें,

खुले नैनों के द्वार से

कहाँ दौड़े चले जाते है ?

एक कसमसाहट सी होती है -

अंगड़ाई…

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Added by coontee mukerji on June 3, 2013 at 10:21pm — 11 Comments

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