जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार
बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार
घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त
जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त
बरखा लेकर आ गई ,राहत और सुकून
दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून…
Added by Sarita Bhatia on June 30, 2013 at 6:00pm — 9 Comments
रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार
उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई…
Added by Sarita Bhatia on June 27, 2013 at 7:30pm — 26 Comments
आज हर ओर खुदी है सड़क
खड्डों मिट्टी की है भरमार
क्योंकि चुनाव को रह गया है एक साल
इसलिए हरेक नेता जी को
सड़क अब टूटी नज़र आने लगी है
अपनी बेरूख़ी जनता अब भाने लगी है
अब सफाई वाला ,कूड़ा उठाने वाला हाज़िरी लगाने लगे…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 26, 2013 at 10:00am — 22 Comments
काली घटाओं ने दिल्ली को यूँ घेरा है
दिन में ही देखो छाया कैसा अँधेरा है
दिल क्यों धक धक करे गोरी तेरा है
आज तो ठंडी हवाओं का यहाँ बसेरा है
होगी बारिश खूब,दिल कहे आज मेरा…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 17, 2013 at 11:00am — 15 Comments
Added by Sarita Bhatia on June 14, 2013 at 7:00pm — 24 Comments
दो छोटी रचनाएँ पिता को समर्पित
1.
थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है
प्यार छुपा जो डांट से समझाए वो पिता होता है
कंधे बिठा सारी…
Added by Sarita Bhatia on June 10, 2013 at 10:30am — 14 Comments
इमारत का कद बढ़ता जाए
पानी का स्तर घटता जाए
हरियाली का दाव लगा है
चारों ओर ही सूखा पड़ा है
…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 6, 2013 at 11:00pm — 13 Comments
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