For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – June 2017 Archive (11)

ज़िंदगी के सफ़हात...

ज़िंदगी के सफ़हात ...

हैरां हूँ

बाद मेरे फना होने के

किसी ने मेरी लहद को

गुलों से नवाज़ा है

एक एक गुल में

गुल की एक एक पत्ती में

उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है

नाज़ुक हाथो की नरमी है

कुछ सुलगते जज़्बात हैं

कुछ गर्म लम्हों की सौगात है

काश

तुम मेरे शिकवों को समझ पाते

जलते चिराग का दर्द समझ पाते

मेरी पलकों को

इंतज़ार की चौखट में

कैद करने वाले

कितना अच्छा होता

साथ इन गुलों के

तुम भी आ जाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 9:30pm — 4 Comments

पीते हैं ...

पीते हैं ...

सब 

कुछ न कुछ

पीते हैं //



रजनी

सांझ को

पी जाती है

और सहर

रजनी को

फिर सांझ

सहर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //

अंत

आदि को

पंथ

पथिक को

संत

अनंत को

घाव

भाव को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //



नयन

नीर को

नीर

पीड़ को

समय

प्राचीर को

सरोवर

तीर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 7:22pm — 4 Comments

सौगंध के बंधन ....

सौगंध के बंधन ....

मुझे

सब याद है

समय की गर्द में

कुछ भी तो नहीं छुपा

न तुम

न तुम्हारी

आँखों में आंखें डालकर

सात जन्मों तक

साथ निभाने की

सौगंध

चलते रहे

चलते रहे

साथ साथ

इक दूजे के दिल में

पुष्प भाव से गुंथे हुए

अर्थपूर्ण तृषा

और अर्थपूर्ण तृप्ति की

अभिलाष के साथ

इक दूसरे  के

अंतर्मन को छूते हुए

कब यथार्थ की नदी पर

एक किनारे ने

दूसरे किनारे को जन्म…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 4:21pm — 8 Comments

अनकहा ...

अनकहा ...

कुछ तो

रहने दिया होता

मन की कंदराओं में

करवटें लेता

कोई भाव

अनकहा

क्या

ज़रूरी था

स्मृति पृष्ठ की

यादों को

नयन तीरों का

पता देना

आखिर

पता लग गया न

ज़माने को

सब कुछ

जो दबा के रखा था

दिल में

इक दूजे से

बांटने के लिए

सांझा दर्द

अनकहा

सांझ

कब तलक

तिमिर को रोकती

प्रतीक्षा की रेशमी डोरी

प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments

तुम्हारी कसम ...

तुम्हारी कसम ...

सच

तुम्हारी कसम

उस वक़्त

तुम बहुत याद आये थे

जब

सावन की फुहारों ने

मेरे जिस्म को

भिगोया था

जब

सुर्ख़ आरिज़ों से

फिसलती हुई

कोई बूँद

ठोडी पर

किसी के इंतज़ार में

देर तक रुकी रही

जब

तुम्हारे लबों के लम्स

देर तक

मेरे लबों से

बतियाते रहे

जब

घटाओं की

कड़कती बिजली में

मैं काँप जाती

जब

बरसाती तुन्द हवाओं से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 15, 2017 at 9:35pm — 6 Comments

1 . नटखट नज़र .../2 . भीगी सौगातें ...

1 . नटखट नज़र ...

हो जाती बरसात तो गज़ब  होता
फिर वो भीगी हया का क्या होता
वो उड़ती चुनर पे नटखट  नज़र
भटक जाती अगर तो क्या  होता

2 . भीगी सौगातें ..

.

सावन की रातें हैं सावन की बातें है 

सावन में भीगी सी चंद मुलाकातें है
इक दूजे में सिमटे वो भीगे से  लम्हे
साँसों की साँसों को भीगी सौगातें हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 14, 2017 at 1:30pm — 4 Comments

मैं तस्वीर हो गया ...

मैं तस्वीर हो गया ...

क्यूँ

मेरी तस्वीर को

दीवार पर लगाते हों

एक कल को

वर्तमान बनाते हो

आज तक

कोई मेरे चेहरे को

पढ़ न पाया था

हर अपने ने मुझे

अपने स्वार्थ का

मोहरा बनाया था

मेरी हंसी भी मज़बूर थी

मेरा अश्क भी पराया था

यूँ जीवित रहने का

मैंने हर फ़र्ज़ निभाया था

चलो अच्छा हुआ

मैं एक अनकही तहरीर हुआ

बेगानों से अपनों की

ज़ागीर हुआ

अब मेरा सम्मान मोहताज़ नहीं

किसे से छुपा कोई राज़ नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 12, 2017 at 3:00pm — 5 Comments

बाज़ुओं में ....

बाज़ुओं में ....

कौन रोक पाया है

समय वेग को

अपने गतिशील चक्र के नीचे

हर पल को रौंदता

चला जाता है

और लिख जाता है

धरा के ललाट पर

न मिटने वाली

दर्द की दास्तान

शायद

तुमने मेरे चेहरे की लकीरों को

गौर से नहीं देखा

तुमने सिर्फ

मुहब्बत के हर्फ़ पढ़े हैं

उन हर्फों को

बेहिजाब होते नहीं देखा

किर्चियों से चुभते हैं

जब ये हर्फ़

समय के अश्वों की

टापों के नीचे

बे-आवाज़ फ़ना हो जाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 3:52pm — 4 Comments

स्पंदन....

1,स्पंदन......(२ मुक्तक)  :

व्यर्थ व्यथा है हार जीत की
निशा न जाने पीर  प्रीत की
नैन बंध सब शुष्क  हो  गए
आहटहीन हुई राह मीत की
.... ..... ..... ..... ..... ..... ..... ....

2.

गंधहीन हुए चन्दन  सब
स्वरहीन हुए क्रंदन  सब
स्मृति उर से रिसती रही
मौन हो गए स्पंदन  सब

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 12:54pm — 6 Comments

श्वासों का क्षरण ...

श्वासों का क्षरण ...

मैं

बहुत रोयी थी

अपने एकांत में

तेरे बाद भी

कई रातों तक

तेरे अंक में सोयी थी

तेरा जाना

एक घटना थी शायद

दुनियां के लिए

मगर

असंभव था

तुझे विस्मृत करना

मैं तेरे गर्भ के अंक की

पहचान थी

और तू

मेरे स्मृति अंक की श्वास

सच

कोई भी नहीं देख पाया

मेरे रुदन को

तूने कैसे देख लिया

शुष्क पलकों में

तू मुझसे कल

मिलने आयी थी

अपने अंक में

तूने मुझे सुलाया…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 7, 2017 at 4:14pm — 6 Comments

खूंटी पर टंगी कमीज़ को ....

खूंटी पर टंगी कमीज़ को ....

जब जब

मैं छूती हूँ

खूंटी पर

टंगी कमीज़ को

मेरा समूचा अस्तित्व

रेंगने लगता है

उस स्पर्शबंध के आवरण में

जहां मेरा शैशव

निश्चिंत सोया करता था

अब

जब आप नहीं रहे

मैं इस कमीज़ में

आपको महसूस करती हूँ

सामना करती हूँ

हर उस दूषित दृष्टि का

जो मेरे शरीर पर

अपनी कुत्सित भावनाओं की

खरोंचें डालती है

मेरी दृष्टिहीनता को

मेरी कमजोरी मानती है

न, न

आप…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 5, 2017 at 4:11pm — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service