2122 2122 212
दर्द को दिल में दबाना सीख लो
ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो
आंख से आंसू बहाना छोड़िये
हर मुसीबत को भगाना सीख लो
ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से
खेल में खुद को जिताना सीख लो
फूल को दुनिया मसल कर फैंकती
खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो
छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी
कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो
थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी
दिन पुराने अब भुलाना सीख लो
कौन…
ContinueAdded by Dayaram Methani on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments
दर्दों गम से हर कोई बेजार है,
हादसों की हर तरफ़ दीवार है।
बिक रहे हैं वो भी जो अनमोल हैं,
कैसे नादानों का ये बाज़ार हैं।
सब्र अब सबका चुका लगता मुझे,
हर बशर लड़ने को बस तैय्यार है।
पल में तोला पल में माशा मत बनो,
ये भी जीने का कोई आधार है।
मुफलिसी के मारे लगते हैं सभी,
फ़िर भी ये लगते नहीं लाचार हैं।
जिसके हाथों में हैं ज्यादा पुतलियाँ,
उनकी ही उतनी बड़ी सरकार…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 4, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
अरकान:-12112 12112
न छाँव कहीं,न कोई शजर
बहुत है कठिन,वफ़ा की डगर
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र
तलाश किया, जहाँ में बहुत
कहीं न मिला, वफ़ा का गुहर
तमाम हुआ, फ़सान: मेरा
अँधेरा छटा, हुई जो सहर
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर
हबीब अगर, क़रीब न हो
अज़ाब लगे, हयात…
ContinueAdded by Samar kabeer on July 4, 2019 at 2:30pm — 36 Comments
ज़ीस्त को मुझसे है गिला देखो
जी रहा हूँ मैं हौसला देखो
साथ रहते हैं एक छत के तले
दरम्याँ फिर भी फासला देखो
तुम जिधर जा रहे हो बेखुद से
वहीं आयेगा जलजला देखो
सँभाल ही लूँगा मरासिम…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
हर पन्ने पे होंगीं बलात्कार की खबरें,
इसलिए अखबार पढ़ने का मन नही करता।
परिवार की जड़ें उखड़ कर वृद्धाश्रम में आ गईं,
अब बच्चों को संस्कारी कहने का मन नही करता।
नंगी सड़क पे बचाओ बचाओ पूरे दिन चिल्लाता रहा,
फिर भी उसपे विश्वास करने का मन नही करता।
शरीर के इंच इंच पे, मैं राष्ट्रभक्त हूँ गुदवा रखा था,
फिर भी उसकी राष्ट्रभक्ति पढ़ने का मन नही करता।
कोई मोब्लिंचिंग तो कोई चमकी में मरा होगा इसलिए,
अब सुबह जल्दी…
Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on July 3, 2019 at 8:14am — 4 Comments
लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
.
फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
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साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
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तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
.
वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2019 at 7:30am — 7 Comments
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