कजरे गजरे झाँझर झूमर , चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गये सब , ऐसा प्यार जताया था
हरी चूड़ियाँ टूट गईं , क्यों सुबह-सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको , अपने पास बुलाया था
जितनी करवट उतनी सलवट, इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो , किसने यहाँ बिछाया था
हाथों की मेंहदी ना बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने , खुद ही कहाँ बचाया था
झूठ कहूँ तो कौवा काटे…
Added by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 7:30pm — 13 Comments
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