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Dr.Prachi Singh's Blog – July 2012 Archive (8)

राज कुँवरी (रूपमाला छंद)

रूप चंदा चाँदनी सम , चाँद भी शरमाय .
ठुमक ठुम ठुम ठुमक चलना , अंगना गुंजाय .
ओढ़ चूनर राज कुँवरी , झूमती इतराय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
तोतली बोली करे है , प्रेम की बरसात .
दुख सभी के सब हरे है , हो निशा या प्रात .
नयन की भाषा पढ़े है , नयन से हर्षाय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
भ्रूण जो कन्या गिराएं , घर बनें वीरान .
संस्कृति और सभ्यता…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 28, 2012 at 5:30pm — 13 Comments

कुछ हाइकू

कुछ हाइकू
 
१.
है अनासक्त .
निर्मोही सांसारिक .
जीवन-मुक्त .
 
२.
न जीत-हार .
दुआ त्याग करार .
निःस्वार्थ प्यार .
 
३.
संग में खेली .
दूर, फिर भी पास .
सच्ची सहेली .
 
४.
बिम्ब दिखाए .
दोस्ती इक आईना .
अश्रु मुस्काए .

Added by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 5:52pm — 11 Comments

वक़्त (कुछ दोहे)

वक़्त (कुछ दोहे)

**************************************************
वक़्त चिरैया उड़ रही , नित्य क्षितिज के पार l 
राग सुरीले छेड़ती , अपने पंख पसार ll
**************************************************
वक़्त परिंदा बाँध ले , बन्ध न ऐसो कोय l
थाम इसे जो उढ़ चले , जीत उसी की होय ll
**************************************************
बीते पल की थाप पर , मूरख नीर बहाय l
खुशियों को ढूँढा…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments

प्रीत के उपहार

प्रीत के उपहार

छंद रूपमाला (१४ +१० ) अंत गुरु-लघु ,समतुकांत
*****************************************************
झनक झन झांझर झनकती , छेड़ एक मल्हार .
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार .
फहर फर फर आज आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरक चँचल , साजना अभिसार .
*****************************************************
धडकनें मदहोश पागल , नयन छलके…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments

जाने क्यों ?

दीवान में 

बटोर कर रखा 

बरसों पुराना सामान 

कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....

उसमे तो कैद होते हैं 

ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने 

जो हमें उस रूप में ढालते हैं

जो आज हम हैं....

हमारी पूरी ज़िंदगी

समेटे होती हैं

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन…

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Added by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 10:59pm — 4 Comments

हंसों का जोड़ा (एक प्रेम गीत)

हंसों का जोड़ा  (एक प्रेम गीत)
 
दो आतुर हंसों का जोड़ा
नेह मिलन जब बेसुध दौड़ा,
 
कुछ कुछ जागा, कुछ कुछ सोया
इक दूजे में बिलकुल खोया,
 
अर्धखुली सी उनकी आँखें
मंद मंद सी महकी साँसें,
 
धड़कन में लेकर मदहोशी
कुछ हलचल औ कुछ खामोशी ,
 
कदमों  में दीवानी थिरकन
बहके बहके से अंतर्मन…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 6:00pm — 17 Comments

अनछुआ चैतन्य

अनछुआ चैतन्य



क्या याद हैं

तुम्हें

वो लम्हे,

जब

हम तुम मिले थे ?

तब सिर्फ़

एक दूसरे को

ही नहीं सुना था हमने,

बल्कि,

सुना था हमने

उस शाश्वत खामोशी को

जिसने

हमें अद्वैत  कर दिया था....

तब सिर्फ़ 

सान्निध्य  को

ही नहीं जिया था हमने,

बल्कि,

जिया था हमने  

उस शून्यता को

जो रचयिता है

और विलय भी है

संपूर्ण सृष्टि की.... …



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Added by Dr.Prachi Singh on July 11, 2012 at 9:30pm — 31 Comments

चेतना के कदम....

ओढ़ शून्य का झीना आँचल
बढ़ चलें अनायास ही...
शून्य में समेट लेने
प्रकृति का अनंत विस्तार
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया
हो लय,
रहे मात्र क्षण...
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 3, 2012 at 3:00pm — 17 Comments

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