अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
कल तक जो थी मित्रता, आज न हमें सुहाय|
तूने छेड़ा है मुझे, अब खुद लियो बचाय||
सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
शहर कभी गुलजार था, धरम बीच क्यों आय|
कल तक जिससे प्यार था, फूटी आँख न भाय!!
पत्थर गोली गालियाँ, किसको भला सुहाय|
अमन चैन से सब रहें, फिर से गले लगाय ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 6:58pm — 7 Comments
शहर की रूमानियत, जाने कहाँ पर खो गयी
एक चिंगारी से गुलशन, खाक जलकर हो गयी
अजनबी से लग रहे हैं, जो कभी थे मित्रवत
रूह की रूमानियत, झटके में कैसे सो गयी
ख्याल रखना घर का मेरा, जा रहे हैं छोड़कर
सुन के उनकी बात जैसे, आत्मा भी रो गयी
सड़क सूनी, सूनी गलियां, बजते रहे थे सायरन
थे मुकम्मल कल तलक सब, आज ये क्या हो गयी
रब हैं सबके बन्दे उनके, एक होकर अब रहो
इस धरा को पाक रक्खो, साख सबकी खो गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 12:30pm — 4 Comments
‘शहर’ जो गुलजार था,
हाँ, धर्म का त्योहार था.
नजर किसकी लग गयी
क्यों अशांति हो गयी
दोष किसका क्या बताएं
मन में ‘भ्रान्ति’ हो गयी
होती रहती है कभी भी…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 9:00pm — 13 Comments
दो सरल रेखाएं
जब एक बिंदु पर आकर मिलती हैं
एक ऋजु कोण का निर्माण करती हैं
ऋजु कोण से अधिक कोण
क्रमश:
घटती दूरी
और
फिर न्यून कोण
न्यूनतम करती हुई
दोनों रेखाएं एक दूसरे से मिल जाती है
तब उनके बीच बनता है- शून्य कोण
समय की चोट खाकर
दोनों रेखाएं
अलग होती हुई
सामानांतर बनती है
और
अनन्त पर जाकर मिलती हैं
या फिर विपरीत दिशाओं में
और दूर
और दूर
होती…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 17, 2015 at 8:55pm — 8 Comments
बाबूजी जी के श्राद्ध कर्म में वे सारी वस्तुएं ब्राह्मण को दान में दी गयी जो बाबूजी को पसंद थे. शय्या-दान में भी पलंग चादर बिछावन आदि दिए गए. ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग में बाबूजी इन वस्तुओं का उपभोग करेंगे. लोगों ने महेश की प्रशंशा के पुल बांधे।
"बहुत लायक बेटा है महेश. अपने पिता की सारी अधूरी इच्छाएं पूरी कर दी."
"पर दादाजी को इन सभी चीजों से जीते जी क्यों तरसाया गया?"- महेश का बेटा पप्पू बोल उठा.
.
(मौलिक व अप्रकाशित )
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 5, 2015 at 8:30pm — 22 Comments
बुढ़िया दादी बिस्तर पर पड़ी-पड़ी अपनी अंतिम साँसें गिन रही है. डॉ. साहब आते हैं, देखते हैं दवा देते हैं, कभी कोई इंजेक्शन भी चढ़ा देते हैं. डॉक्टर से धीरे धीरे बुदबुदाती है. – “बेटा, बंटी से कहो न, जल्द से जल्द ‘परपोते’ का मुंह दिखा दे तो चैन से मर सकूंगी. मेरी सांस परपोते की चाह में अंटकी है."
बच्चे की जल्दी नहीं, (विचार वाला) बंटी अपनी कामकाजी पत्नी की तरफ देख मुस्कुरा पड़ा. …
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 8:48pm — 5 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |