Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 26, 2012 at 6:48pm — 14 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 25, 2012 at 9:20pm — 4 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 25, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
वो बच्चा
बीनता कचरा
कूड़े के ढेर से
लादे पीठ पर बोरी;
फटी निकर में
बदन उघारे,
सूखे-भूरे बाल
बेतरतीब,
रुखी त्वचा
सनी धूल-मिटटी से,
पतली उँगलियाँ
निकला पेट;
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में,
कोई घृणा नहीं
कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत
निर्विचार, स्थिर;
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा,
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में
चल पड़ता…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 9:24am — 20 Comments
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