२१२२ ११२२ ११२२ २२/ ११२
ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है
वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है
काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा ज़िंदगी का…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 27, 2016 at 2:30pm — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२2
जाने किस ऊंचाई पर सब लोग जाना चाहते है
हो जमी पे ही खड़े सब क्या दिखाना चाहते हैं
जो समंदर पार के ले आदमी वो ही बड़ा अब
आप ऐसी सोच रखकर क्या जताना चाहते है
आदि से कंगूरों की सूरत टिकी जिस नीव पर थी
आप क्यूँ उस नीव को ही अब भुलाना चाहते हैं
बंगले नौकर गाडी मोटर की तमन्ना तो नयी अब
पर अभी भी प्यार दिल में हम पुराना चाहते हैं
पढ़ लिया इतिहास सबने जानते अंजाम भी सब
फिर भी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 22, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२
मीत बनाते बस इक अपना दुश्मन सौ खुद मिल जाते है
गुल को पाने की चाहत में खारों से तन छिल जाते हैं
हम तो उसको भाई कहते वो हमको कमजोर बताता
नहीं समझता जब हम अपनी पे आते सब हिल जाते है
बसें चलाते गले लगाते क्या क्या नहीं किया करते हम
पर जिस वक़्त गले मिलते दुश्मन को मौके मिल जाते हैं
हम पूरब के बासी हमको मत तहजीब सिखा उल्फत की
यहाँ जमाने से उल्फत में बदले दिल से दिल जाते…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
नहीं आती मुझे अब नींद जीभर के पिला साकी
निशा गहरी डगर सूनी कहाँ जाएँ बता साकी
मुहब्बत मेरी पथराई जमाने भर की ठोकर खा
अहिल्या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी
मैं भंवरों सा भटकता ही रहा ताउम्र बागों में
कमल से अपने इस दिल में तू ले मुझको छुपा साकी
ये मंजिल आखिरी मेरी ये पथ भी आखिरी मेरा
मेरी नजरों से तू नजरें घड़ी भर तो मिला साकी
जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 2:00pm — 13 Comments
१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२
नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है
लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है
कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी
नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है
चलो कदम से कदम मिलाकर हसीं अगर जिन्दगी बनानी
ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है
कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे
ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2016 at 3:00pm — 9 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |