२२ २२ २२ २
दीवारों को दर कर लें
ऐसा अपना घर कर लें
वरना होगा शोर बहुत
ज़ख्मों को अक्षर कर लें
झुकने को तैयार रहे
ऐसा अपना सर कर लें
मान बढ़ेगा नारी का
लज्जा को ज़ेवर कर लें
है कीमत जीवन की ,गर
यादों को हम जर कर लें
जीना आसां होगा , गर
गुमनाम हमसफ़र कर लें
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2014 at 9:30pm — 7 Comments
२२ २२ २२ २२
सन्नाटा भी पसरा सा है
उसका कमरा बिखरा सा है
अब तुम पास नहीं हो ,शायद
उसका मुखड़ा उतरा सा है
बुत से कैसा कहना सुनना
हाफ़िज़ भी तो बहरा सा है
जीवन हुआ दिसंबर जैसा
आँखों में क्यों कुहरा सा है
देख के तुझे लगता है ये
चाँद कांच का कतरा सा है
गुमनाम बना लो घर कोई
अब खंजर का खतरा सा है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on July 29, 2014 at 2:30pm — 5 Comments
ये तो गूंगों की नगरी है भैया जी
सरकार हमारी बहरी है भैया जी
दंगों में दोस्त दोस्त क्यों मरते हैं
प्यार मुहब्बत भी बकरी है भैया जी
राजा को वनवास कहाँ अब मिलता है
आस लगाये अब शबरी है भैया जी
दिखावटी का अफ़सोस जताता है वो
वो शख्स बड़ा ही शहरी है भैया जी
कुछ खत जले कहीं जब शहनाई गूँजी
आशिक की डूबी गगरी है भैया जी
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on July 24, 2014 at 10:00pm — 8 Comments
२१२२ १२२२ २
झोपड़ी को डुबाने निकले
सारे बादल दिवाने निकले
खेत घर हो गए बंजर से
बच्चे बाहर कमाने निकले
द्रोपदी सी प्रजा है बेबस
जब से राजा ये काने निकले
आदमी भूल आदम की पर
पाक खुद को बताने निकले
जब्त गम को किया तब हम भी
इस जहां को हँसाने निकले
माँ को खोया तो समझा मैंने
हाथ से जो खजाने निकले
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on July 22, 2014 at 7:00pm — 10 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मिलो गर ज़िन्दगी से तुम कोई फ़रियाद मत करना
बिठाना बैठना हँस लेना दिल नाशाद मत करना
रखो दिल काबू में पहली नज़र के प्यार में यारो
जमाना कहता खुद को कैस ओ फरहाद मत करना
किताबें मजहबी रहने दो इन अलमारियों में बंद
मिलो जो आदमी से पोथियों को याद मत करना
सियासत की फरेबी चाल में फंसकर ऐ लोगो तुम
मुहब्बत चैन अमन को तुम कभी बर्बाद मत करना
मैं उधड़े जख्मो की तुरपाई…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2014 at 11:00pm — 15 Comments
२१२२ २१२२ २…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 13, 2014 at 1:01pm — 8 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २
पीते अश्क़ समंदर के आवारा ये बादल
लुटते हैं दुनिया के लिए हमेशा ये बादल
माँगा नहीं हिसाब कभी अपने अहसानो का
निभा रहे हैं दस्तूर भी निराला ये बादल
हर एक चेहरे पर देखो प्यास झुलसती सी
किसकी प्यास बुझाए एक अकेला ये बादल
कभी रुलाये कभी हसए बतियाये संग में
कजरारी आँखों की याद दिलाता ये बादल
गरजकर सुनाये हाले दिल भी अपना लेकिन
सब दरवाजे बंद खड़ा तनहा ये बादल
दुनिया में…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 11, 2014 at 4:00pm — 7 Comments
जब यादों की शबनम रोती है
तब सारी शब नम सी होती है
मेरी परवाह करे क्यों दुनिया
ज़ख्मो पर वाह सदा होती है
जगमग देखी जो मेरी दुनिया
जग मग में खार पिरोती हैं
प्रिय तम में उसको छोड़ गया
वो प्रियतम की खातिर रोती है
मूसा फिर आये राह दिखाने
राह…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2014 at 4:00pm — 11 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |