For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – July 2016 Archive (10)

कुकभ छंद

देश-देश चिल्लाते सारे,मतलब इसका समझो तो
संस्कृति,उत्सव परम्पराएँ, गुण माटी का समझो तो
मातृ भूमि का कण-कण सारा,संग उसी के जनता है
साथ सभी ये मिल जाते हैं,देश तभी तो बनता है।


हे भारत के युवा सुनो तुम, देशभक्ति मन में भरना
जीवन अपना इसकी खातिर,सारा अर्पण तुम करना
पढ़-लिखकर है बढ़ते रहना, भारत आगे करना है
खेल,ज्ञान में मान कमाकर, प्रतिमानों को गढ़ना है

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 29, 2016 at 10:33pm — 8 Comments

कीमत ए बेपरवाही (लघुकथा)/सतविन्द्र कुमार

कीमत ए बेपरवाही

-----------------------

हंसी ख़ुशी जीवन बीत रहा था।वे दोनों और उनका पांच साल का बच्चा,जो उनकी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण था और ज़रिया भी।

आज जब वह कपड़े धोने के बाद कमरे में गई तो बच्चे को फर्श पर अचेत हाल में देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।उसे तो उसने टीवी पर कार्टून देखते हुए छोड़ा था।

पर क्या हुआ? न कोई आवाज ,न कोई हलचल।मुँह में झाग और शरीर नीला।शायद कोई दौरा था।

शंकित मन से पति को फोन मिलाया,"सुनिए....चीनू को पता नहीं ...क्या हुआ है?वो....कुछ… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 26, 2016 at 11:29pm — 11 Comments

कुण्डलियाँ

पीर पराई बूझता,है सच्चा इंसान

दर्द लगे सबका जिसे,अपने दर्द समान

अपने दर्द समान, दूर उसको वह करता

जाता खुद को भूल,देख औरों को मरता

लगता उसका जोर,बचाने में भी भाई

हर अच्छा इंसान,समझता पीर पराई।



------



आस लगाए जो रहें,करें नहीं कुछ कर्म

बनें रहें बस आलसी,नहीं उन्हें है शर्म

नहीं उन्हें है शर्म,रहें पुरषार्थ भुलाकर

जो देखें बस बाट, हाथ पर हाथ चढ़ाकर

उनका राखा राम,नहीं जिनको श्रम सुहाए

बिना करे कुछ कर्म,रहें जो आस… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:30am — 4 Comments

महाराणा प्रताप (वीर छंद प्रयास)

वीर कहीं रावल बप्पा थे,राणा कुम्भा की थी शान

आधी देह संग लड़ जाते,राणा सांगा बहुत महान

जिनके पुरखों की गाथा का,कर पाया न कोई बखान

कहें महाराणा जी सारे,उन प्रताप का गाऊं गान



जैवन्ता बाई थी माता,औ उदय सिंह जी थे तात

बड़े चाव से उनको पाला,शुरु से सीखी अच्छी बात

पलते-बढ़ते ही राणा ने,दुश्मन की जानी औकात

मौके पर ही धोखा देदे,ऐसी थी अकबर की जात



अकबर ने तो यह सोचा था,जीतेगा वह हिंदुस्तान

नतमस्तक बहु राज्य हुए थे,बढ़ जाती थी उसकी… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 23, 2016 at 7:48am — 4 Comments

चन्द हाइकू

चन्द हाइकू:
---------------

कवि हृदय
निश्छल सा आशिक
शब्दों से प्यार।

छँटे तमस
मन पर पसरा
शब्द उजाला।

कल्पना सधे
झूठ-कपट भगे
सज्जन कवि।

शब्द साधना
विश्व की जागृति
रचनाकार।

प्रकृति प्रेम
पर्यावरण सेवा
शब्द उद्गार।

राष्ट्र भावना
बलवती अपार
करे सृजन।

समाजिकता
सोहार्द को बढ़ावा
सत्य उद्गार।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 21, 2016 at 4:30pm — 8 Comments

गुरु-महिमा(आल्हा छंद पर प्रयास)

आज पर्व पावन है आया,होता है जो गुरु के नाम

कोटि-कोटि नत गुरु चरणों में,उनसे सीखे हैं सब काम

ज्ञान-सुधा बरसाते हैं जो,दे सकता क्या उनका दाम

माँ शारद को उनके पीछे,ही करता हूँ मैं परनाम!



मूढ़ पड़े पत्थर जैसे थे,जब तक मिला नहीं था ज्ञान

कोई काम सधा कब साधे, हम तो बने रहे अनजान

एक ज्योति पुँज हमें दिखाया,अज्ञान हुआ अंतर्ध्यान

हिंदी की सेवा हो जाए,बना रहे इसका सम्मान

.

शिष्य श्रेष्ठ हो जाता है तो,गुरु का भी बढ़ता है मान

इक दूजे के पूरक… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 9:30pm — 10 Comments

दोहे : सतविन्द्र कुमार

दोहे



जग से ईर्ष्या क्यों करें,क्यों हो कोई होड़

सबकी अपनी राह है,दौड़ें या दें छोड़।।



प्रेम-प्रीत की रीत से,जग को लेते जीत

ईर्ष्या व बुरी भावना, रखती है भयभीत।



जिसको कोई चाहता ,वह ही उसका मीत

स्नेह-प्रेम के जोर से,बने हार भी जीत।।



ठाले बैठे क्यों रहें, कर लें कुछ तो काम

ईर्ष्या जाती यूँ उपज,कर देती बदनाम।



सबकुछ उनके पास है,हम ही हैं कंगाल

बैठे खाली सोचते,कैसे आए माल।।



सोच-सोच कर मन मुआ,विचलित हुआ… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 18, 2016 at 11:30am — 9 Comments

सावन गीत (उल्लाला छंद)/सतविन्द्र कुमार

क्यों अब तक सोये पड़े, सुनों पवन संगीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



उमस बढ़ी जब जोर से,जिस्म पसीना सालता

दम घुट-घुट कर आ रहा,मुश्किल में ये डालता

राहत औ ठंडक मिले,सो बरखा से प्रीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



धान-कटोरा सूखता,बिन पानी के मेल से

कृषक सभी उकता गए,लुक-छिप के इस खेल से

बादल अब जाओ बरस,करो नहीं भयभीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



सावन भी यह टीसता, बिन बरखा के साथ के

अब… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 12:00pm — 4 Comments

नारी तू नारायणी (उलाला छंद)/सतविन्द्र कुमार

नारी भारत में कभी,पाती थी सम्मान को

उसको थे सब पूजते,रखते उसके मान को

कष्ट बहुत सहने पड़े,कालांतर में नार को

कमतर था समझा गया, दुर्गा के अवतार को।



फिर नारी ने भी सही,दी खुदको पहचान है

आदिकाल से ही रही,नारी की तो शान है

सूया-सीता रूप में,नारी पर अभिमान है

जीजा माँ ,दुर्गावती,भारत-भू की आन है।



मातृशक्ति है जो बनी,नारी जीव महान है

जिसके आँचल में पले, पाती सुख संतान है

हर सुख अपने छोड़ दे,ममता-गुण की खान है

हे देवी! हम मानते,… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 7:30am — 4 Comments

बढ़ता जीवन,घटती ताकत(कुण्डलिया)/सतविन्द्र कुमार

जीवन का यह खेल है,जो चलता दिन रैन
समझे जो इस बात को,वह पाता है चैन
वह पाता है चैन,कभी फिर दुःख ना पाए
मस्ती में ले काट,समय जैसा मिल जाए
सतविंदर कह बात,वही जो हो सच्ची जी
कटते जब दिन -रात,चले ताकत घटती जी।।


मौलिक एवम् अप्रकाशित।

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 14, 2016 at 11:17am — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service