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प्रदीप देवीशरण भट्ट's Blog – July 2019 Archive (8)

शहर के हंकाई

लहू बुज़ुर्गो का मिट्टी में बहाने वालो

दागदारोँ को सरेआम बचाने वालो

बच्चोँ के हाथ में शमशीर थमाने वालो

बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती



खुदा के नाम पे दुकानों को चलाने वालो

धर्म् के नाम पर इंसा को बाँट्ने वालो…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2019 at 12:30pm — 3 Comments

बच्चा ज्यों-ज्यों होता बडा

बच्चा ज्यों-ज्यों होता बड़ा

हँसता कभी रोता ज़रा

उँगली थामे दौड़ रहा वह

गिरता कभी होता खड़ा
देखें बचपन तो जी ललचाए

काश हम भी बच्चे बन जाएँ

अट्खेली से सबै…
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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 29, 2019 at 2:00pm — 3 Comments

दिल का खाली कोना

दिल के बदले दिया सपना सलोना

नहीं खाली था शायद दिल में कोना

ये माना मैंने तुम सबसे हसीं हो

मगर सोना तो फ़िर भी होता सोना

ना  वादा तुम करो मिलने का कोई…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 19, 2019 at 1:30pm — 3 Comments

बेटी बचाओ बेटी पढाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 

सिर्फ़ एक नारा भर नहीँ है

कुछ करके दिखाना भी है

एक क़दम मैंने बढाया है

एक क़दम तुम भी ढ़ा

झिझको मत ठहरो मत

आगे बढो और पढाओ…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 17, 2019 at 5:30pm — 1 Comment

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा पर विशेष

 

गुरु कृपा हो जाए तो सफ़ल सिद्ध हों काम ।

कृपा हनू पर रखते हैं जैसे सियापति  राम॥

 

राम कहें शंकर गुरु ,भोले कहें श्रीराम।

दोनों ही सर्वज्ञ हैं, मैं जाऊं काकै…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 16, 2019 at 4:00pm — 1 Comment

अपने आप में

"यदि तुम्हें

उससे प्रेम है अनंत!

तो तुम स्वीकार

क्यूँ नहीं करते।

 

क्यूँ नहीं देख पाते

उसकी आंखों का सूनापन

जहाँ बरसों से नही बरसी…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

नादान बशर

दर्दों गम से हर कोई बेजार है,

हादसों की हर तरफ़ दीवार है।

 

बिक रहे हैं वो भी जो अनमोल हैं,

 कैसे नादानों का ये बाज़ार हैं।

 

सब्र अब सबका चुका लगता मुझे,

हर बशर लड़ने को बस तैय्यार है।

 

पल में तोला पल में माशा मत बनो,

ये भी जीने का कोई आधार है।

 

मुफलिसी के मारे लगते हैं सभी,

फ़िर भी ये लगते नहीं लाचार हैं।

 

जिसके हाथों में हैं ज्यादा पुतलियाँ,

उनकी ही उतनी बड़ी सरकार…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 4, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

ज़ीस्त

ज़ीस्त को मुझसे है गिला देखो

जी रहा हूँ मैं हौसला देखो

साथ रहते हैं एक छत के तले

दरम्याँ फिर भी फासला देखो

तुम जिधर जा रहे हो बेखुद से

वहीं आयेगा जलजला देखो

सँभाल ही लूँगा मरासिम…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments

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