नव गीत
बहुत दिनों के बाद
मैंने यह डायरी खोली है।
आज नहीं है तू ओ! सजनी
मैं हूं सागर के बिन तरणी
पंछी बन कैदी हूं घर में
खड़ी हुई ज्यों रेल सफर में
बहुत दिनों के बाद
तेरी यह डायरी खोली है।
पढ़ लेता मैं डायरी पहले
कह देता जो चाहे कहले
घुट घुट के न रोने देता
कहा हुआ सब तेरा करता
बहुत दिनों के बाद
मर्म यह डायरी खोली है|
पता चला है आज ही मुझको
कितनी बेचैनी थी तुझको
तभी तो तूने कदम…
Added by Abha saxena Doonwi on July 27, 2016 at 7:30am — 3 Comments
नव गीत
सूर्य ने
छाया को ठगा |
काँपता थर.थर अँधेरा
कोहरे का है बसेरा
जागता अल्हड़ सवेरा
किरनों ने
दिया है दग़ा |
रोशनी का दीपकों से
दीपकों का बातियों से
बातियों का ज्योतियोँ से
नेह नाता
क्यों नहीं पगा |
छाँव झीनी काँपती सी
बाँह धूपिज थामती सी
ठाँव कोई ताकती सी
अब कौन है
किसका सगा
......आभा
प्रस्तुत नव गीत अप्रकाशित एवं मौलिक है .....आभा
Added by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
बहुत कर्ज़ है पापा मुझ पर
कैसे अदा करूं|
बचपन में मैं जब छोटी थी
कैरम की जैसे गोटी थी
घूमा करती छत के ऊपर
कभी न टिकती एक जगह पर
उन सपनों को उन लम्हों को
कैसे जुदा करूँ ।
सुबह सुबह उठ कर तुम पापा
सरदी में ना करते कांपा
मुझे उठा कर मुंह धुलवाते
शिशु कवितायें भी तुम सिखलाते
कहाँ छिप गये तुम तो जा कर
कैसे निदा करूं|
मेरे विवाह के थे वह फेरे
आँखों पर रूमाल के डेरे
थकी कमर थी, थकी थी…
Added by Abha saxena Doonwi on July 22, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
नव गीत.....
बेला महका.......
बेला महका चम्पा महकी
महकी है कचनार
झूम रहीं सब काकी बहनें
नृृत्य करें हर बार।
गाँव में शादी है होली
फूलों से सजती है डोली
संबन्धी ने भेजा न्योता
गाँव मेरे अब क्यों ना आता
बातों की भर मार।
रात रात भर बेला जागा
खिल न सका वह कहीं अभागा
कहीं गुंथ गया गजरे अन्दर
समझ रहा वह तुझे सिकन्दर
नहीं पा सकी पार।
बचपन बीता यौवन आया
शैतानी ने कदम बढ़ाया
तंत्र मंत्र…
Added by Abha saxena Doonwi on July 21, 2016 at 7:21pm — 8 Comments
2122-2122-212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
झूठ की बुनियाद पर रिश्ते हुए,
ख़त्म सारे वास्ते उस से हुये.
बेवजह तुमने मिटाईं दूरियां,
पास रह कर भी न हम तेरे हुए.
गाल पर गिर कर भी जो लहरा रहे,
हर नज़र में कान के झुमके हुए.
जिंदगी से आज भी उम्मीद है,
हम नहीं रहते हैं अब सहमे हुए.
आपसे अक्सर सुना मैंने सनम
चार दिन की चांदनी कहते हुए
है मुखौटा आदमी का आज…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 19, 2016 at 8:30am — 10 Comments
कैसे कहूँ कि तू मुझे चिट्ठी ही भेज दे,
तू है जहाँ वहां की तू मिट्टी ही भेज दे.
याद आ रही है मुझको तेरी आज इस तरह,
तू प्यार से लिख चिट्ठियां कोरी ही भेज दे.
करता तलाश नौकरी कैसे बता मिले,
चिठ्ठी नहीं तो तू मेरी अर्जी ही भेज दे.
बेज़ार हो चुकी बहुत तनहाइयों से मैं,
बेशक तू कोई याद पुरानी ही भेज दे.
इस जिंदगी की राह में कांटे बिछाये क्यूँ,
तू ज़िंदगी के नाम की रुबाई ही भेज…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 6, 2016 at 5:41pm — 8 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |