For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी's Blog – August 2013 Archive (7)

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५७-६१ (तरुणावस्था-४ से ८)

(आज से करीब ३२ साल पहले: भावनात्मक एवं वैचारिक ऊहापोह)

 

रात्रिकाल, शनिवार ३०/०५/१९८१; नवादा, बिहार

-----------------------------------------------------

मेरी ये धारणा दृढ़ होती जा रही है कि सत्य, परमात्मा, आनंद, शान्ति- सभी अनुभव की चीज़ें हैं. ये कहीं रखी नहीं हैं जिन्हें हम खोजने से पा लेंगे. ये इस जगत में नहीं बल्कि हममें ही कहीं दबी और ढकी पड़ी हैं और इसलिए इन्हें इस बाह्य जगत में माना भी नहीं जा सकता, खोजा भी नहीं जा सकता, और पाया भी नहीं जा सकता....स्वयं के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 26, 2013 at 1:26pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५५-५६ (तरुणावस्था-२ व ३)

(आज से करीब ३२ साल पहले)

 

शनिवार ०४/०४/१९८१; नवादा, बिहार

-----------------------------------------

आज भी दवा मुझपे हावी रही. स्कूल से घर आने के बाद कुछ पढ़ाई की. परन्तु जैसे किसी बाहरी नियंत्रण में आकर मुझे पढ़ाई रोकनी पड़ी. ऊपर गया और मां से खाना माँगा. मगर ठीक से खाया भी नहीं गया. एक घंटे के बाद चाय के एक प्याले के साथ मैं वापिस नीचे अपने कमरे आया. कलम कापी उठाई और लिखने बैठ गया. मन कुछ हल्का हुआ.

 

मैंने ऐसा महसूस किया कि दवा का प्रभाव खाने के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 22, 2013 at 2:00pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५४ (तरुणावस्था-१)

(आज से करीब ३२ साल पहले)

 

लगता है मुझे कोई बीमारी हो गई है. परसों पिताजी डॉक्टर के पास ले गए थे. नाक से बार बार खून आने लगा है. मां ने कहा है कि कुछ दिन मुझे नियमित रूप से दवा खानी होगी.

 

कल रात दवा खाई थी. नींद आ रही थी मगर आँख नहीं लग रही थी. देर रात बिस्तर पे करवटें बदलता रहा और सोचता रहा कि कब स्वस्थ होऊंगा. सुबह पौने छः बजे आँख खुली. ज़बरन बिस्तर से उठा, एक मदहोशी सी छाई थी. अकस्मात गुड्डी दादी के साथ हुई दुर्घटना ने सारे आलस्य को काफूर कर दिया. वो घर की…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:21am — 7 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ४२ (हे प्रभु)

हे प्रभु,

मैंने मन मंदिर में

आपकी मूर्ति की स्थापना तो कर दी है

मगर इसकी प्राण-प्रतिष्ठा का काम तो आपका ही है

क्योंकि मुझमें यह कला नहीं.

अब आप ही इसके देव, आप ही इसके पुजारी,

और आप ही इसके उपासक हैं.

मैं तो इक इमारत भर हूँ

जो जड़ता के स्पंदन के स्तर तक ही जीवित

और अस्तित्ववान है.

 

हे नाथ,

जब तक आप इसके मूल में प्राणाहूत हैं,

इस प्रस्तरशिला रूपी संरचना का कोई अर्थ है.

हे मालिक,

समय-समय…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 8, 2013 at 8:30am — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ४१ (ओ मेरी महानायिका)

पीड़ा ने जब कभी

शब्दों के दंश बनकर तुम्हें डंसना चाहा

प्रेम ने स्मिति बनकर अधरों को बाँध लिया...

 

उपेक्षाओं ने जब कभी

तुम्हारे जीवनपर्यंत त्याग का प्रण लिया  

स्मृतियों की अलकों के आलिंगन ने और भी जकड़ लिया...

 

भावनाओं के उद्रेकों ने जब कभी

भावुकता से काम लिया

तुम्हारी परिस्थितिजन्य उदासीनता ने

मेरे विवेक को थाम लिया.....

 

मेरे जीवन में न होकर भी होने वाली

ओ मेरी महानायिका!

हमारा…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 12:38pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४२ (ज़िंदगी खुद अपनी पैमाइश में छोटी होती गई

वक़्त फिर बदल गया. कुछ नया तो नहीं, कुछ पुराना भी न रहा. ज़िंदगी खुद अपनी पैमाइश में छोटी होती गई. यादों के काफिले सच की राह को छोटा कर गए. मंजिल की धुन में मौजूदगी का ख़याल न रहा. मौजूदा में डूबे तो मंजिल को भूल गए. जो मिला उसमें मुहब्बत न देख पाए और जो न मिला, उसे मुहब्बत की लुटी दुनिया समझके रोते रहे. सच और परछाइयों की कशमकश में दोनों ही नुक्सानज़दा हुए क्योंकि सच परछाइयों का अक्स है और परछाइयां सच की रूमानियत- और ज़िंदगी दोनों के तवाज़ुन…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:18am — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४३ (दिल ने जब भी खुद को कुरेदा है)

दिल ने जब भी खुद को कुरेदा है, मेरे खून के इलावा नाखून से तेरा खून भी चिपका है. अजब है ये इत्तेफाक.... कि मुसर्रत (खुशी) का न सही तुझसे दर्द का तो रिश्ता है. शायद इसलिए ही कि दर्दज़दा हुए जब भी तो मुझे अपना दर्द गरां (भारी) लगा क्योंकि इसमें तेरे दर्द की भी न चाही गई आमेज़िश (मिश्रण) थी.

 

नाखून से चस्पां (चिपका) खून का इक ज़र्रा ये खबर दे गया कि तुम अभी कहाँ हो, किधर हो, किस हाल हो, तुम्हारे चेहरे का रंग ज़र्द है या सुर्ख, तुम्हारी नसों में दौड़ता खून अभी थका है या पुरजोश,…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:14am — 2 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service