राम रम में घोलकर वो
लिख रहे चौपाईयां
कोंपले, कत्थई, गुलाबी
औ हरी पुरवाईयाँ
पा भभूति हो चली हैं
पेट वाली दाईयाँ
खोल मुँह बैठा कमंडल
सुरसरि की आस में
ध्यान भी, करता यजन भी
डामरी उल्लास में
पर सरफिरा हाकिम समझता
खिज्र की रानाईयाँ
चूडि़याँ टुन से टुनककर
छन से पड़ी जिस होम में
बड़ा असर रखता गोसाईं
नीरो के उस रोम में
नरमेध के इस अश्व…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on August 29, 2013 at 2:51pm — 17 Comments
सांवरी सुन सांवरी
आई मधुर मधुश्रावणी
नभ मीत हृद पर दामिनी
नव ताल से इठला रही
या दिगंबर को उमा
अपनी झलक दिखला रही
सुन सौरभे, हर-गौर,…
Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
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