For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Rajesh kumari's Blog – August 2012 Archive (5)

ये माटी सभी की कहानी कहेगी ||

कहाँ बदन पर सजी रंगोली

कहाँ हुआ उसका खनन

कब कोई उसमे विलीन हुआ

कहाँ हुआ पूजा हवन

सब युगों युगों तक निशानी रहेगी

ये माटी सभी की कहानी कहेगी |



कहाँ प्यासे जिस्म में पड़ी दरारें

कहाँ निर्बाध जल में नहाया बदन

कहाँ इंसां ने बंजर बनाया

कहाँ लहलहाया मदमस्त चमन

जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी

ये माटी सभी की कहानी कहेगी |



कहाँ मेढ़ों ने करे विभाजन

कहाँ जुड़े सांझे आँगन

कहाँ सुने मिलन के गीत

कहाँ बरसा विरह का सावन

इन…

Continue

Added by rajesh kumari on August 31, 2012 at 12:00pm — 15 Comments

प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी…

Continue

Added by rajesh kumari on August 23, 2012 at 1:00pm — 22 Comments

मृगनयनी

तुम्हारे क़दमों के नीचे

सूखे हुए पत्तों की

चरमराहट ने भेज दिया

संदेसा,

छुप गई

मृगनयनी कोमल

लताओं की ओट में

अपलक निहारने लगी

तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य

काँधे पर तरकश

हाथ में तीर लेकर

ढूंढ रहे थे तुम अपना

शिकार

दरख़्त से

लिपटी हुई लताओं

के खिसकने की

आवाज के साथ

तुमने कुछ खिलखिलाहट

महसूस की

तुमने झाँक कर देखा

ढलते हुए सूरज की

सुर्ख लाल किरणों के

तीर उसकी आँखों को बींध…

Continue

Added by rajesh kumari on August 16, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

हमारे बुजुर्ग

बुजुर्गों के पाँव तले जन्नत का आभास होता है 

सभी रिश्तों में उनसे रिश्ता बहुत खास होता है 

जिस घर में मात कौशल्या दशरथ तात नहीं होते

वो  अपना घर नहीं होता वहां वनवास होता…

Continue

Added by rajesh kumari on August 11, 2012 at 10:46am — 9 Comments

कविता

 कैसे लिखी जाती है

कविता मुझे पता नहीं 
बस भावनाओं के
 कुछ बादल जन्म लेते हैं
 दिल की सतह पर 
और वाष्पित होकर  
मस्तिष्क में पंहुच कर 
उमड़ पड़ते हैं 
और बूँद बूँद बरसते 
हैं शब्द बनकर ,घुल जाते हैं 
मेरी कलम की स्याही में 
और उतर आते हैं 
किसी सपाट पन्ने 
पर कविता बनकर
******

Added by rajesh kumari on August 9, 2012 at 12:09pm — 8 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service