122 122 122 122
कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में
न कद से समंदर की औकात…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2015 at 11:57am — 15 Comments
चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे
आज वो रह गए केवल मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 23, 2015 at 10:00pm — 19 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२१ दीप राहों में जलाओ जशने आज़ादी है आज, ध्वज वतन का लह्लहाओ जशने आज़ादी है आज,
|
Added by rajesh kumari on August 16, 2015 at 10:30am — 16 Comments
पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं
चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं
प्यारा के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं
चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं
रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते
सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं
बेवफाई से हुए इश्क में जो दिल पत्थर
प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं
दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा
तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 11, 2015 at 7:49pm — 17 Comments
रिमझिम सावन की फुहार आज मेरा भैय्या आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
अम्बर पे बादल छाये
सखियों ने झूले पाए
भाभी ने गायी कजरी
बाबा जी घेवर लाए
कर लूँ अब मैं तनिक सिंगार आज मेरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
दीवार पे कागा बोले
यादों की खिड़की खोले
अम्मा ने संदेसा भेजा
सुनसुन मेरा मन डोले
मायके से आया तार आज मोरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 8, 2015 at 11:52am — 6 Comments
2122 212 2122 1212
सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या
होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या
बांटता सबको बराबर न रखता कोई हिसाब
इक समन्दर के लिए मूल क्या और सूद क्या
बूँद इक मोती बनी दूसरी ख़ाक में मिली
सिलसिला है जीस्त का बूद है क्या नबूद क्या
जिन चिरागों की जबीं पर लिखी हुई हो तीरगी
अर्श उनके वास्ते लाल, पीला, कबूद क्या
उस अदालत में…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 4, 2015 at 10:55am — 24 Comments
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |