माँ सोनी के कमरे से खूब रोने चीखने की आवाजें आ रही थी, १४ साल की राधा भयभीत हो रसोई में दुबकी रही, जब तक पिता के बाहर जाने की आहट ना सुनी ! बाहर बने मंदिर से पिता हरी की दुर्गा स्तुति की ओजस्वी आवाज गूंजने लगी! भक्तों की "हरी महाराज की जय" के नारे से सोनी की सिसकियाँ दब गयी! पिता के बाहर जाते ही माँ से जा लिपट बोली "माँ क्यों सहती हो?" सोनी घर के मंदिर में बिराजमान सीता की मूर्ति देख मुस्करा दी! अपने घाव पर मलहम लगाते हुए बोली, "मेरा पति और तेरा पिता…
ContinueAdded by savitamishra on August 25, 2014 at 2:00pm — 20 Comments
अपनी आबरू बेच जब
हाथ में नोट आया
लड़की ने नोट पर
अंकित गांधी के चित्र पर
अपनी बेबस नजरों को गड़ाया
गांधी बहुत ही शर्मिंदा हुए
अपनी खुद की नजरों को
जमीं में गड़ता पाया
नहीं मिला पायें नजर
आंसुओं से डबडबाई नजरों से
देश के हालत पर चीत्कार से…
Added by savitamishra on August 21, 2014 at 1:00pm — 24 Comments
हे प्रभु, सुन !
कर दें अँधेरा
चारों तरफ.. .
उजाले काटते हैं / छलते है !
लगता है अब डर
उजालें से
दिखती हैं जब
अपनी ही परछाई -
छोटी से बड़ी
बड़ी से विशालकाय होती हुई.
भयभीत हो जाती हूँ !
मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,
ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !
जब होगा अँधेरा चारों ओर
नहीं दिखेगा
आदमी को आदमी !
यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.
फिर तो मन की आँखें
स्वतः खुल जाएँगी !
देख…
Added by savitamishra on August 19, 2014 at 2:00pm — 20 Comments
सुमन बदहवास सी घटना स्थल पर पहुंची, अपने बेटे प्रणव की हालत देख बिलखने लगी| भीड़ की खुसफुस सुन वह सन्न सी रह गयी, एक नवयुवती की आवाज सुमन को तीर सी जा चुभी "लड़की छेड़ रहा था उसके भाई ने कितना मारा, कैसा जमाना आ गया ......|" "अरे नहीं, 'भाई नहीं थे', देखो वह लड़की अब भी खड़ी हो सुबक रही है" बगल में खड़ी बुजुर्ग महिला बोली ....यह सुन सुमन का खून खौल उठा, और शर्म से नजरें नीची हो गयी| प्रणव पर ही बरस पड़ी "तुझे क्या ऐसे 'संस्कार' दिए थे हमने करमजले, अच्छा हुआ जो तेरे बहन नहीं है| प्राण ..."मम्मी…
ContinueAdded by savitamishra on August 16, 2014 at 12:00am — 22 Comments
देख तेरे देश की हालत क्या हो गयी बलिदानी
कितना बदल गया है यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी
अपनों में ही खोया यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|
की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी
अपनों में ही खोया यहाँ हर एक…
Added by savitamishra on August 13, 2014 at 8:00pm — 9 Comments
रक्षा सूत्र में पिरोकर अपना प्यार भेजा है
भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है|
माना मन में तेरे राखी का सम्मान नहीं
बड़े मान से हमने अपना दुलार भेजा है|
रिश्ता भाई बहन का हैं एक अटूट बंधन
होता जार जार जो सब जोरजार भेजा है|
ढुलक गया मोती जो मेरी नम आँखों से
पिरोकर मोती हमने उपहार भेजा है|
गिले शिकवे भूल सारे फिर एक बार
सहेज कर यादें लिफ़ाफ़े में मधुर भेजा है|
राखी दो पैसे की हो या हजारों की भैया…
Added by savitamishra on August 7, 2014 at 11:00am — 7 Comments
एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं सुख-दुःख,
फिर क्यों लगता है -
-सापेक्ष सुख के नहले पर दहला सा दुःख ?
- सुख मानो ऊंट के मुहं में जीरा-सा ?
आखिर क्यों नहीं हम रख पाते निरपेक्ष भाव ?
प्यार-नफ़रत तो हैं सामान्य मानवी प्रवृत्ति !
फिर भी -
प्यार पर नफ़रत लगती सेर पर सवा सेर ,
प्यार कितना भी मिले दाल में नमक-सा लगता !
थोड़ी भी नफ़रत पहाड़ सी क्यों दिखती है आखिर ?
होते हैं…
Added by savitamishra on August 5, 2014 at 10:01am — 38 Comments
मेघ निबह
श्याम श्वेत निर्मोही
भ्रम फैलाये
उड़ती घटा छाये
सूर्य आछन्न
दुविधा में फंसाए
काम बढाए
अकस्मात बरखा
बाहर डाले
कपड़े निकालते
फिर डालते
गृहलक्ष्मी दुचित्ता
क्रोध बढ़ाए
उलझौआ पयोद
वक्त कीमती
दुरुपयोग होता
वक्त भागता
सुना था कभी कही
खुद पे बीती
खीझ दुघडिया पे
भुनभुनाती
काम है निपटाने
प्रावृट् बदरा
तुझे सूझे नौटंकी
घुंघट ओढ़
हुई तू तो बावरी|
तंग गृहणी
मेघ निरंग निस्तारा
भ्रान्ति…
Added by savitamishra on August 4, 2014 at 12:21pm — 19 Comments
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